#QUARANTINE_BOOK1
आषाढ़ का एक दिन: मोहन राकेश
कालिदास को केंद्र में रखकर लिखा गया ये नाटक कल पढ़ा।
सोचा कि जब पढ़ लिया है तो कुछ लिख भी दिया जाय।
शुरुआत आषाढ़ के एक दिन से होती है और अंत भी आषाढ़ के ही एक दिन से। कालिदास नायक और मल्लिका नायिका है।
इस नाटक को पढ़ते समय लगता है कि नाटक देख रहे हैं, कारण मोहन राकेश का वर्णन।
मल्लिका कालिदास की प्रेमिका है जो कालिदास से निःस्वार्थ प्रेम करती है। इसके प्रेम में बंधन नही है बल्कि एक मुक्ति है जो कारण बनती है कालिदास के उत्कर्ष की। कालिदास को उज्जयनी से आमंत्रण मिलता है कि सम्राट उन्हें राजकवि का पद देना चाहते हैं।
यहां कालिदास एक ऐसे व्यकि के रूप में परिलक्षित होते हैं जो प्रकृति से प्रेम करता है ।वो मल्लिका को और इस परिवेश के छोड़कर जाना नही चाहता।
अम्बिका मल्लिका की माँ है ठीक वैसी ही जैसी हमारी या आपकी माँ होती है । वो चाहती है मल्लिका का विवाह कालिदास से हो जाये और मल्लिका चाहती है कि कालिदास उज्जयनी जाए क्योंकि उज्जयनी में उसे वो सब मिलेगा जो यहाँ नही मिल सकता।
विलोम इस नाटक में कालिदास के विपरीत खड़ा एक चरित्र है जो """यथार्थ"" है।
मल्लिका भावुक है , कालिदास भावुक है पर विलोम???
नाटक में एक पंक्ति है--
विलोम क्या है? एक असफल कालिदास। और कालिदास? एक सफल विलोम।
मातुल एक ग्रामपुरुष है , जो चाहता है की कालिदास उज्जयनी जाए। मातुल एक कर्मठ व्यक्ति है और स्वयं भी कवि है।
प्रथम अंक के अंत के कालिदास उज्जयनी जाते हैं। यहाँ से कालिदास के जीवन का द्वंद्व दिखता है। वो जब भी कोई ग्रंथ लिखते हैं तो उनकी प्रेरणा मल्लिका होती है परंतु विवाह राजकन्या से करते हैं। एक ओर कालिदास कश्मीर का शासक बनना चाहते हैं दूसरी ओर उनका मन राजकाज में भी नहीं लगता। निश्चित ही भूतकाल मे जिये हुए आभाव के कारण कालिदास कश्मीर में शाषन करने का निर्णय लेते हैं परंतु मन कहीं उस मिट्टी से और उन हरिण शावकों में लगा रहता है जिसे कभी राजकवि के पद के लिए छोड़ आये थे।
इधर मल्लिका एक आदर्श प्रेमिका की तरह भोजपत्रों को जोड़ जोड़ कर एक ग्रंथ बनाती है - कोरा ग्रन्थ जिस पर कालिदास अपना सर्वश्रेष्ठ लिखेगा। पर क्या यह हो सकेगा????
बीच मे कई और पात्र भी हैं जैसे अनुस्वार और अनुनासिक जो कि मातृगुप्त( कालिदास) के अनुचर हैं। प्रियंगुमंजरी जो कालिदास की पत्नी है। प्रियंगुमंजरी मल्लिका से मिलती है और प्रस्ताव देती है कि उसके घर का पुनर्निर्माण कराए पर मल्लिका मना कर देती है यहां मल्लिका का एक स्वाभिमानी चरित्र देखने को मिलता है।
अंत मे कालिदास का मन राजकाज से ऊब जाता है, चारो ओर ये बात फैल गयी है कि कालिदास ने सन्यास ले लिया और काशी चले गए।
आषाढ़ का एक दिन है बारिश हो रही है मेघ गरज रहे हैं ठीक वैसे ही जैसे कालिदास के उज्जयनी जाते समय था।
द्ववार पर कालिदास आता है और मल्लिका जड़ होकर ऊसे देखती रह जाती है।
यहां कालिदास कहता है कि अम्बिका ठीक कहती थी कि मैं यहां से क्यों जाना नहीं चाहता था? एक कारण यह भी था कि मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं था।
कश्मीर का शाषक बनाना अभावपूर्ण जीवन की एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी।
एक मार्मिक क्षण तब आता है जब मल्लिका अपने हाथ से सिये पन्ने देकर कहती है,
" सोचा था तुम राजधानी से आओगे ,तो तुम्हे यह भेंट दूंगी। कहूंगी की इन पृष्ठों पर अपने सबसे बड़े महाकाव्य कि रचना करना।परंतु तुम उस बार आकर भी नहीं आये और यह भेंट यहीं पड़ी रही। अब तो ये पन्ने भी टूटने लगे हैं, और मुझे यह संकोच होता है कि ये तुम्हारी रचना के लिए हैं।"
कालिदास उन पन्नो को देखते हुए कहता है, तुमने अपनी आंखों से इन कोरे पृष्ठों पर बहुत कुछ लिखा है...........इन पर एक महाकाव्य की रचना हो चुकी है...... अनंत सर्गों के एक महाकाव्य की।इन पृष्ठों पर अब नया क्या लिखा जा सकता है।
परंतु अभी जीवन शेष है।
हम फिर अथ से आरंभ कर सकते हैं।
इसी बीच बच्चे के रोने की आवाज आती है और कालिदास के ये पूछने पर की किसके रोने की आवाज है मल्लिका कहती है , "" यह मेरा वर्तमान है""
इस बीच विलोम आता है और कालिदास से कुछ बातें होती हैं।
यहां विलोम कहता है, समय निर्दय नहीं है उसने औरों को भी क़सत्ता दी है। अधिकार दिए हैं। वह धूप और नैवेद्य लिए घर की देहरी पर रुक नहीं रहा। उसने औरों को अवसर दिया है! निर्माण किया है।
कालिदास यह कहते हुए वापस चला जाता है कि मैं अथ से शुरू करना चाहता हूँ ये संभवतः इच्छा का समय के साथ द्वंद्व था। परंतु देख रहा हूँ कि समय शक्तिशाली है क्योंकि...... वह प्रतीक्षा नहीं करता।
और नाटक यहीं समाप्त हो जाता है।
मेरे विचार से इस नाटक में मल्लिका भावुकता का प्रतीक है क्योंकि वह अम्बिका की बात नही सुनती , उसका प्रेम यथार्थ नहीं देखता , स्वार्थ नहीं देखता बल्कि अपने प्रेमी का उत्कर्ष देखता है।
जबकि कालिदास एक असफल प्रेमी है जिसके लिए मल्लिका प्रेरणा है उसके सभी ग्रंथो की।
विलोम यहाँ यथार्थ है , अंत मे मल्लिका उसी यथार्थ को स्वीकार करती है क्योंकि----- समय औरों को अवसर देता है।
धन्यवाद!
लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"