रविवार, 14 मई 2017

Happy Mother's Day

माँ को शब्दों में नही बाँधा जा सकता। माँ एक लफ़्ज नही एक संसार है । एक व्यक्ति नही एक व्यक्तित्व है। माँ प्रकृति है जो सिर्फ देना जानती है।

1
किसी आँगन में अम्मा की हँसी जब छूट जाती है।
तो खुशियों के नदी की बांध जैसे टूट जाती है।
दुखा कर दिल कभी आबाद रह पाया नहीं कोई
कि खुशियां दूर हो जाती जो अम्मा रूठ जाती है।

2
वो चूल्हे पर पतीले में चढ़ा कर दाल बैठी है
हमारे हर ग़मो को वो ख़ुशी में ढाल बैठी है
बुरी नज़रो हमारे पास आने से प्रथम सुन लो
हमारी माँ तुम्हारे वास्ते बन काल बैठी है।

3
कैसे शब्दों में तुझे बांधे कलम हैरान है .
स्वर्ग से बढकर सदा अम्मा तेरा स्थान है .
जब कभी बाधाओं -विघ्नों नें मुझे  घेरा है तब
सच कहूं  मां लब पे मेरे बस तुम्हारा नाम है .

4
मां भोर की उजास है
 दु:ख में भी सुख की आस है
मां दिल के सबसे पास है
मां दिल की एक अहसास है
जो दूर रहकर पास है
जो दिल की एक आवाज है
जो निराश मन की आश है
जो प्यार की एहसास है
वो और कुछ है ही नहीं
बस मां की एक आवाज है
इस अन्धेरे में दिखाई पड़ रहा जो प्रकाश है
वो मेरी मां का मेरे प्रति विश्वास है ,जो खास है
मेरेमन मे विजय का जो तनिक भी विश्वास है
वो इसलिये की साथ मेरे मां का आशीर्वाद है .
आज "दीपक " जल रहा और दे रहा जो प्रकाश है
उस लौ में है जो रौशनी वह मां का ही विश्वास है .

© लोकेन्द्र मणि मिश्र"दीपक"
lOve U  MaA


मंगलवार, 2 मई 2017

शहीद सैनिक और उसकी पत्नी की आखिरी बातचीत

शहीद सैनिक और उसकी पत्नी के बीच अगर आखिरी बार बात होती तो शायद यही होती

वीर सैनिक की पत्नी:

सुबह फोन पर यही कहा था जल्दी घर को आऊंगा
और तुम्हारी खातिर बेटे नये खिलौने लाऊंगा।

ऐ जी तुमको देखे जाने कितने ही दिन बीत गये
जीवन में विष ही विष है, लगता अमृत घट रीत गये।

तुमने यही कहा था बहना की शादी में आओगे
बबुआ की खातिर कपड़े और मेरी साड़ी लाओगे।

फिर क्यों अपना वादा आज निभाना भूल गये हो जी
हमे छोड़ कर आखिर हमसे क्योंकर दूर गये हो जी

पत्नी को लगता है जैसे सैनिक बोल रहा है....

तुमसे दूर कहाँ जाऊँगा सात जन्म का बन्धन है
प्यार हमारा और तुम्हारा पावन है ज्यों चन्दन है।

लेकिन सब धर्मों से ऊपर राष्ट्र धरम वो मेरा था
जब दुश्मन ने भारत माता की माटी को घेरा था।

माता पर जो आँख उठे वो आँख फोड़ना होता है
हाथ उठाता है जो उसका हाथ तोडना होता है।

हम सब तो तैयार खड़े थे पिस्टल थामे बाँहों में
मगर कहीं आदेश पड़ा था राजभवन की राहों में।

कभी पीठ पर गोली हमने खाई थी ना खाई है
हर जवान की मौत की खातिर दिल्ली उत्तरदायी है।

भारत माँ के आँचल पर जो हाथ लगाने आयेगा
सबसे पहला वार हमारे सीने से टकरायेगा।

प्रियतम विदा करो अब मुझसे अधिक न बोला जाता है
हंसते हंसते ही जग से वीरों का टोला जाता है।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
9169041691