शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

ख्वाब आँखों में बस गया होगा

ख्वाब आँखों में बस गया होगा
सारी दुनिया बिखर गयी होगी.

वो जो तितली थी इस बगीचे में
उड़ के जाने किधर गयी होगी।

हर घडी फ़ोन में लगा रहता
ये मोहब्ब्त नयी नयी होगी।

खुद को मुझसे अलग किया होगा
फिर वो ज्यादा निखर गयी होगी।

वो जो रखतीं थी बाँध कर जुल्फें
अब भी वैसे ही रख रही होगी?

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

सोमवार, 14 जनवरी 2019

मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम

मैं हूँ अब भी खड़ा उसी रस्ते
जिससे होकर कभी गए थे तुम।

यार छोडो भी वस्ल की बातें
उस समय तो नए नए थे तुम।

एक झटके में रूबरू हो कर
एक झटके में हट गए थे तुम।

मेरी ग़ज़लों में साथ हो मेरे
मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम।

मैं भी खामोशियों में रहता हूँ
जबसे खामोश हो गए थे तुम।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

लप्रेक: प्रेम में दुनिया

याद है जब अचानक चलते समय तुमने उस जोड़े की तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा था, ये दुनिया प्रेम में ही खूबसूरत लगती है" और मैंने पूछा था  ऐसा क्या है प्रेम में जो दुनिया इतनी खूबसूरत लगने लगती है ? इसके जवाब में तुमने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा था प्रेम खूबसूरत होता है क्योंकि प्रेम में इंसान सिर्फ खूबसूरती देख पाता है जैसे कि इस तस्वीर में तुम देख रहे हो। इस बातचीत में हम भूल गए की ये आखिरी मुलाक़ात थी।
प्रेम के छाँव से निकल कर अपने अपने रास्तों की धूप से अब दोनों को रूबरू  होना था।

Lokendra Mishra
#लप्रेक

रविवार, 13 जनवरी 2019

मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम

मैं हूँ अब भी खड़ा उसी रस्ते
जिससे होकर कभी गए थे तुम।

यार छोडो भी वस्ल की बातें
उस समय तो नए नए थे तुम।

एक झटके में रूबरू हो कर
एक झटके में हट गए थे तुम।

मेरी ग़ज़लों में साथ हो मेरे
मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम।

मैं भी खामोशियों में रहता हूँ
जबसे खामोश हो गए थे तुम।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शनिवार, 5 जनवरी 2019

यही मोहब्बत के मायने हैं...

हज़ारों गम हैं हमारे अन्दर बस एक ख़ुशी का पता नहीं है
वो कह रहा है मुझे पता है मगर उसे कुछ पता नहीं है।

हज़ारों लोगों की चीखे हैं और न जाने कितना है शोर अब भी
मगर जिसे सुनना चाहे ये दिल है सब मगर वो सदा नहीं है।

मैं तुमसे बातें भी अब न करता इसे गलत मत समझना जाना
हज़ारों बाते हैं पास मेरे मगर कहूं क्या पता नहीं है।

यही मोहब्बत के मायने हैं, ख़याल उसका ख़ुशी भी उसकी
तमाम हिस्सों में बंट चुका हूँ पर इसमें उसकी खता नहीं है।

न जाने कितना सहा है तुमने न जाने क्या दुनिया देख ली है
जो कुछ भी पूछो तो बोलती हो मुझे ये सब कुछ पता नहीं है।

मुझे वो मैसेज नहीं है मिलता "कहाँ बिजी हो" "क्या कर रहे हो"
मुझे पता है  जो कर  रही  हो ये तो  तुम्हारी अदा नहीं है।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"