हज़ारों गम हैं हमारे अन्दर बस एक ख़ुशी का पता नहीं है
वो कह रहा है मुझे पता है मगर उसे कुछ पता नहीं है।
हज़ारों लोगों की चीखे हैं और न जाने कितना है शोर अब भी
मगर जिसे सुनना चाहे ये दिल है सब मगर वो सदा नहीं है।
मैं तुमसे बातें भी अब न करता इसे गलत मत समझना जाना
हज़ारों बाते हैं पास मेरे मगर कहूं क्या पता नहीं है।
यही मोहब्बत के मायने हैं, ख़याल उसका ख़ुशी भी उसकी
तमाम हिस्सों में बंट चुका हूँ पर इसमें उसकी खता नहीं है।
न जाने कितना सहा है तुमने न जाने क्या दुनिया देख ली है
जो कुछ भी पूछो तो बोलती हो मुझे ये सब कुछ पता नहीं है।
मुझे वो मैसेज नहीं है मिलता "कहाँ बिजी हो" "क्या कर रहे हो"
मुझे पता है जो कर रही हो ये तो तुम्हारी अदा नहीं है।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
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