ख्वाब आँखों में बस गया होगा
सारी दुनिया बिखर गयी होगी.
वो जो तितली थी इस बगीचे में
उड़ के जाने किधर गयी होगी।
हर घडी फ़ोन में लगा रहता
ये मोहब्ब्त नयी नयी होगी।
खुद को मुझसे अलग किया होगा
फिर वो ज्यादा निखर गयी होगी।
वो जो रखतीं थी बाँध कर जुल्फें
अब भी वैसे ही रख रही होगी?
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
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