रविवार, 24 अप्रैल 2016

गीतिकालोक

7 अप्रैल को सुल्तानपुर में गीतिकालोक का विमोचन हुआ। मेरा सौभाग्य था की मैं भी वहाँ उपस्थित था। ओम नीरव सर के गीतिका पर व्यख्यान से शुरू होकर 70 कवियों तक के काव्यपाठ तक का मजा सिर्फ वही जान सकता है जो वहां मौजूद रहा हो। धीरज श्रीवास्तव सर की कृति मेरे "गाँव की चिनमुनकी" का भी लोकार्पण हुआ। अवनीश त्रिपाठी सर के द्वारा आयोजित यह कवितालोक का सार्धशतकीय महाकुम्भ बहुत ही मजेदार व् सफल रहा।

गीतिकालोक दो भागों में है पहला भाग गीतिका विधा व् छंदों का परिचय है इस खण्ड में नीरव सर ने बहुत ही सरल ढंग से छंदों के बारे में समझाया है । जो की निश्चित ही मुझ जैसे कई नवोदितों के लिए एक  विशेष महत्व रखता है। यह खण्ड अपने आप में गीतिका के लय और शिल्प के साधको के लिए किसी वरदान से कम नही है।
दूसरा खण्ड है गीतिका संकलन इसमें कवितालोक परिवार के 78 कवियों की गीतिकाओं का संकलन है। सब एक से बढ़कर एक उम्दा भाव तथा शिल्प में बद्ध। प्रत्येक गीतिका के नीचे उसका शिल्पविधान और छंद जिसपर की गीतिका आधारित है का परिचय। निश्चित ही यह संपादक के लिए काफी संघर्षपूर्ण रहा होगा । इस कृति के बारे में जितना भी कहे वो कम होगा या यूँ कहे की सूरज को दीपक दिखाने के जैसा होगा।
यह नीरव सर की ही देन है की गीतिकालोक के रूप में हिंदी साहित्य की  को एक अनमोल हीरा प्राप्त हुआ है।
मुझे पूरा विश्वास है की हिंदी के क्षेत्र में जिस क्रान्ति के लिए कवितालोक का जन्म हुआ है उसके लिए गीतिकालोक का लोकार्पण एक मील पत्थर साबित होगा।

धन्यवाद।
जयतु कवितालोक

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
lokendradeepak.blogspot.com

सोमवार, 11 अप्रैल 2016

गीतिका

जिंदगी जिंदादिली का नाम है।
इंसानियत है धर्म यदि, इंसान है।

राह के पत्थर से भी ऐसे मिलो
यूँ लगे उनके भी तन में जान है।

कुछ नही मुश्किल अगर हम ठान लें
इस जगत में जो भी है आसान है।

आदमी के पतन का यह मूल कारण
दम्भ ईर्ष्या लोभ व अभिमान है।

मिट गया था वंश रावण दुष्ट का
भ्रम उसे था की उसे वरदान है।

©लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
लख़नऊ

रविवार, 3 अप्रैल 2016

इंजीनियरिंग

आज मन किया की कुछ लिखू  पर क्या सोचा चलो वही लिख दूँ जो भोग रहा हूँ। इंजीनियरिंग कोई खेल नही है और उसमे भी यांत्रिकी अभियंत्रण विभाग  सीधे सीधे बोले तो मैकेनिकल इंजीनियरिंग । सबेरे 9:30 से शाम साढ़े पांच बजे तक मैट्रोलोजी, मैन्युफैक्चरिंग साइंस  और एप्लाइड थर्मोडायनॉमिक्स को झेलना कोई मामूली बात नही है। सच कहें तो ठीक वैसी ही फीलिंग आती है जैसी भगवान कृष्ण को कौरवो की सभा में दुर्योधन के द्वारा बन्दी बना लिए जाने की बात पर आयी होगी।  क्या कहे मैकेनिकल वालो के पास तमाम कष्ट है एक तो "आधी आबादी" के प्रतिनिधित्व की कमी है हमारे यहाँ  या ये कहिये की शून्य है गलती से जो कॉरिडोर में कभी कोई दिख जाए तो मत पूछिये .....। जिंदगी में सुकून तो जैसे कंप्रेसर ने खींच लिया हो और परेशानियां तो हमे टरबाइन से मिलती है । कम परेशानियों को भी एक्सपैंड करके अधिक कर देता है ये टरबाइन। और सबसे खास बात ये है की असाइनमेंट्स हमारी भावनाओ  के लिए बिलकुल बॉयलर की तरह काम करते हैं , दिमाग को जब छः सात सौ डिग्री सेल्सियस का टेंपरेचर मिलता है तो बस ....। पी डी पी का एक लेक्चर होता है वो भी हफ्ते में एक बार जो की रोज होना चाहिए ऐसा मैं नही मेरे क्लास के लगभग सभी स्टूडेंट चाहते हैं ( जिनमे मैं भी हूँ) ।
सुबह साढ़े आठ बजे रूम से निकलने के बाद जब शाम छः बजे रूम पर पहुँचते है तो देखते हैं की अभी बर्तन धोना है इंजीनियरिंग की कसम रोना आ जाता है। अभी तो खाना भी बनाना है लो नौ दस तो बज ही गया और एप्लाइड थर्मो का असाइनमेंट भी करना है करो करना ही पड़ेगा और फिर व्हाट्सऐप से सबको बांटना भी पड़ेगा। जिंदगी झंड हो गई है । इतना सब के बाद जब कब्बो इ सुनने का मिल जाता है  की का बाबू इंजीनियरिंग कर रहे हो वो फलाने का लइकवा किया था न असो बीटीसी का फॉर्म भरा है और उ जो मनोजवा था उहो किया था बीटेक आज फोटोकॉपी का दोकान खोल के बैठा है अब तुम्हरा का होगा बे कालिया ??? 
साँच कहें तो गरियाने का मन करता है बाकी लिहाज करते हैं सो रुक जाते हैं। कुछ न कुछ त  जरूर करेंगे ताकि कल मनोजवा के जगह पर कोई हमको न खड़ा कर दे। दिखाएंगे की हम भी किये इंजिनयरिंग ।  अंत में यही कहेंगे माफ़ करियेगा लिखेंगे की खेल नही है इंजिनयरिंग बाबू करने तो आ जाओगे बाकी कर के जाने में याद आ जायेगा क्या याद आ जायेगा ये तो जानते ही हैं आप लोग ......

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
©lokendrdeepak.blogspot.com