7 अप्रैल को सुल्तानपुर में गीतिकालोक का विमोचन हुआ। मेरा सौभाग्य था की मैं भी वहाँ उपस्थित था। ओम नीरव सर के गीतिका पर व्यख्यान से शुरू होकर 70 कवियों तक के काव्यपाठ तक का मजा सिर्फ वही जान सकता है जो वहां मौजूद रहा हो। धीरज श्रीवास्तव सर की कृति मेरे "गाँव की चिनमुनकी" का भी लोकार्पण हुआ। अवनीश त्रिपाठी सर के द्वारा आयोजित यह कवितालोक का सार्धशतकीय महाकुम्भ बहुत ही मजेदार व् सफल रहा।
गीतिकालोक दो भागों में है पहला भाग गीतिका विधा व् छंदों का परिचय है इस खण्ड में नीरव सर ने बहुत ही सरल ढंग से छंदों के बारे में समझाया है । जो की निश्चित ही मुझ जैसे कई नवोदितों के लिए एक विशेष महत्व रखता है। यह खण्ड अपने आप में गीतिका के लय और शिल्प के साधको के लिए किसी वरदान से कम नही है।
दूसरा खण्ड है गीतिका संकलन इसमें कवितालोक परिवार के 78 कवियों की गीतिकाओं का संकलन है। सब एक से बढ़कर एक उम्दा भाव तथा शिल्प में बद्ध। प्रत्येक गीतिका के नीचे उसका शिल्पविधान और छंद जिसपर की गीतिका आधारित है का परिचय। निश्चित ही यह संपादक के लिए काफी संघर्षपूर्ण रहा होगा । इस कृति के बारे में जितना भी कहे वो कम होगा या यूँ कहे की सूरज को दीपक दिखाने के जैसा होगा।
यह नीरव सर की ही देन है की गीतिकालोक के रूप में हिंदी साहित्य की को एक अनमोल हीरा प्राप्त हुआ है।
मुझे पूरा विश्वास है की हिंदी के क्षेत्र में जिस क्रान्ति के लिए कवितालोक का जन्म हुआ है उसके लिए गीतिकालोक का लोकार्पण एक मील पत्थर साबित होगा।
धन्यवाद।
जयतु कवितालोक
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
lokendradeepak.blogspot.com
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