गुरुवार, 5 मई 2016

मुक्तक

न कुर्सी से न तख़्तों से न तलवारो से डरते है
कलम लेकर सदा हम युद्ध गद्दारों से करते हैं।

कहाँ दम है तुम्हारी बात में या बाजुओ में ही
कलम के हम सिपाही है न हथियारों से लड़ते हैं।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
lokendradeepak.blogspot.com

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