बगीचे में खेलते खेलते अचानक वो गिर गया। एक दूसरे लड़के ने उठाया और फिर दोनों खेलने लगे। यकायक शर्मा जी नज़र उस लड़के की और गयी जिसने उनके लड़के को उठाया था। बेटा तुम्हे पहले कभी नही देखा कहाँ रहते हो? हरिजन टोला ।इतना सुनना था की वर्मा जी आगबबूला हो गए , ऐं तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारे बगीचे में आने की भाग नही तो टांग तोड़ दूंगा । आज के बाद दिखाई न देना इधर। ऐ बबुआ की अम्मा ले जाओ बबुआ को और गंगाजल से नहला दो । आके छू दिया एक हरामी । उधर बबुआ की अम्मा बबुआ को गंगाजल से नहला रही थी इधर वर्मा जी फेसबुक पर स्टेटस अपडेट कर रहे थे. End caste discrimination to develop India.
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
©lokendradeepak.blogspot.com
मंगलवार, 10 मई 2016
लघुकथा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें