माँ को शब्दों में नही बाँधा जा सकता। माँ एक लफ़्ज नही एक संसार है । एक व्यक्ति नही एक व्यक्तित्व है। माँ प्रकृति है जो सिर्फ देना जानती है।
1
किसी आँगन में अम्मा की हँसी जब छूट जाती है।
तो खुशियों के नदी की बांध जैसे टूट जाती है।
दुखा कर दिल कभी आबाद रह पाया नहीं कोई
कि खुशियां दूर हो जाती जो अम्मा रूठ जाती है।
2
वो चूल्हे पर पतीले में चढ़ा कर दाल बैठी है
हमारे हर ग़मो को वो ख़ुशी में ढाल बैठी है
बुरी नज़रो हमारे पास आने से प्रथम सुन लो
हमारी माँ तुम्हारे वास्ते बन काल बैठी है।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
©lokendradeepak.blogspot.com
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