गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

कुबेर कविताई केहू ना भुलाई..

धोती- कुर्ता , गान्धी टोपी आ झोरा आ छाता लेहले एगो आदमी जब गाँव में चले त कबो ना बुझाव की भोजपुरी भाषा के हास्य - व्यंग के एगो अद्भुत हीरा हेतना अति साधारण होई।
२५ फरवरी के श्री कुबेरनाथ मिश्र " विचित्र" जी ए दुनिया के छोड़ के इश्वर की लगे चल गईनी। हो सकेला ईश्वर के मन होखे हास्य सुने के।
कुबेर बाबा से जुड़ल बहुत याद बा हमरी लगे। 2015 में एगो कवि सम्मेलन रहे बसंत पंचमी के दिने हमरो कविता पढ़े के रहे, कुबेर बाबा अध्यक्ष रहने जब हमरा पढ़े के भईल कविता ता कहने की जा जमा द एकदम हमनी के त पुरा गाँव कवि हs। हम कविता पढ़नी आ कुबेर बाबा 50 रुपया देहने हमके कविता के बाद आ खूब बड़ाई कईने।
जब भी रास्ता में मिल जास आ कहीं की अगो कविता सुनावs ना बाबा त कबो माना ना करस।
कुबेर बाबा की कविता में हास्य आ व्यंग दुनु मिली। बलिया के बब्बर, दुपहरिया, तिजहरिया डिबलर ( नाटक), अब मेहररुए राज चलइहे, रैनाथ पचासा, सत्यनारायण व्रत कथा के भोजपुरी काव्यानुवाद आदि कई गो किताब प्रकाशित बा।
जब उत्तर प्रदेश में मायावती के सरकार रहे, केन्द्र में अटल जी के आ कलाम जी राष्ट्रपति रहनी तब कुबेर बाबा लिखले रहनी

आबादी कम करे में सबसे आगे देश हमार बा
पी एम से सी एम ले देखी राष्ट्रोपति कुंवार बा।



कुबेर बाबा के कविता सुन के लोग के पेट दुखाए लागो हंसत -2। उनके आखिरी किताब "काशी में तीन -पांच" पिछला साल आईल रहे। हम वॉलीबाल खेल के आवत रहनी त रास्ता में कुबेर बाबा मिल गईने आ झोरा में से किताब निकाल के देहने की लs हइ नयका किताब ह तहरा के नइखी  देले ले ल ना तs ख़तम हो जाइ।
जब कुबेर बाबा के पत्नी के स्वर्गवास भईल रहे त एगो कविता लिखले रहने ओमे तबियत खराब से ले के क्रिया कर्म तक के एक एक दिन के बड़ा जबर्दस्त तरीका से लिखले बाने।देखी एगो मुक्तक..


रउआँ अइतीं त अँगना अँजोर हो जाइत।
हमार मन बाटे साँवर ऊ गोर हो जाइत

जवन छवले अन्हरिया के रतिया बाटे।
तवन रउरी मुसुकइला से, भोर हो जाइत।।

अंत में इहे कहब की भोजपुरी साहित्य में जवना स्थान खाली भईल बा एके भरल बहुत मुश्किल बा।
कुबेर बाबा हमेशा याद रहिहे अपनी कविता के चलते उनही के लिखल ह

कुबेर कबिताई केहु ना भुलाई 
जे भुलाई ओकर कान अईंठाइ।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"