गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

तुम मुझको आवाज़ दो तो सही

1रुक के तुम मुझको आवाज दो तो सही।
एक पावन सा अहसास दो तो सही।
मैं जहां हूँ वहीं तुमको ले आऊंगा
अपने आने का आभास दो तो सही।

2 इस जमीं पर ही आकाश मिल जाएगा।
पतझड़ों में भी मधुमास मिल जायेगा।
इश्क़ की गर ख़ुदा सी इबादत करो
आस ही पास वो तुमको मिल जाएगा।

3 एक ऐसी किताब जो जाऊँ।
सूखे दरिया में आब हो जाऊँ।
मुझको ऐसा बना मेरे मौला
उसकी आँखों का ख्वाब हो जाऊँ।

4 उसने कहा जो कुछ तो मैं पागल सा हो गया।
पानी भरे हुए किसी बादल सा हो गया।
दुनिया के रंजो गम से न कुछ भी हुआ मुझे
उसकी बस एक नज़र से ही घायल सा हो गया।

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

इश्क़ तो बेज़ुबान है साहब

इश्क़ तो बेज़ुबान है साहब
इसके ना मुंह न कान हैं साहब।

पैर धरती पे हैं भले लेकिन
नापना आसमान है साहब।

घर में गर प्यार ना हो घर कैसा
एक खाली मकान है साहब।

उसकी आवाज़ यूँ लगे है कि
कोई मीठी सी तान है साहब।

पंख से फ़र्क कुछ नही पड़ता
पंख बिन भी उड़ान है साहब।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

हम-तुम न मिले तो क्या होगा....

क्या तुम्हें पता ये नही अगर
हम तुम न मिले तो क्या होगा?

तुम और किसी की बाहों में
जब पड़ी पड़ी सो जाओगी।
शायद उस क्षण पूरी हो कर भी
तुम आधी हो जाओगी।
सपने में कोई पूछ पड़ा, कैसी हो अब? तो क्या होगा?

जब किसी सुबह अलसाई सी
इक हवा बहेगी ठंडी सी
वो हवा अगर तन को छू कर
सब याद दिला दे क्या होगा?
हम तुम न मिले तो क्या होगा?

जब आलिंगन में कैद तुम्हारा तन
मन से टकराएगा
और खड़ा कोई सम्मुख अंतर्मन से मुस्कायेगा
मन के मासूम सवालों का उत्तर प्रतिउत्तर क्या होगा
हम तुम न मिले तो क्या होगा?

जब दर्द समोकर भी हंसना , मन के अंदर रोना होगा
कुछ अनचाहे के चक्कर मे जो चाहा था खोना होगा
उस क्षण चाहत पूछेगी ये
मेरी चाहत का क्या होगा?
हम तुम न मिले तो क्या होगा?

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"