बुधवार, 18 अप्रैल 2018

इश्क़ तो बेज़ुबान है साहब

इश्क़ तो बेज़ुबान है साहब
इसके ना मुंह न कान हैं साहब।

पैर धरती पे हैं भले लेकिन
नापना आसमान है साहब।

घर में गर प्यार ना हो घर कैसा
एक खाली मकान है साहब।

उसकी आवाज़ यूँ लगे है कि
कोई मीठी सी तान है साहब।

पंख से फ़र्क कुछ नही पड़ता
पंख बिन भी उड़ान है साहब।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

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