बुधवार, 25 मई 2016

मुक्तक

है लज्जित चाँद और गुमसुम से बैठे हैं सितारे भी
न जाने क्यों तड़पती है मचलती हैं बहारें भी
छिपाओ ना तमन्ना और हसरत दिल के तुम अपने
सदा से हैं वही सपने  हमारे भी तुम्हारे भी।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

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