है लज्जित चाँद और गुमसुम से बैठे हैं सितारे भी न जाने क्यों तड़पती है मचलती हैं बहारें भी छिपाओ ना तमन्ना और हसरत दिल के तुम अपने सदा से हैं वही सपने हमारे भी तुम्हारे भी।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
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