जिंदगी जिंदादिली का नाम है।
इंसानियत है धर्म यदि, इंसान है।
राह के पत्थर से भी ऐसे मिलो
यूँ लगे उनके भी तन में जान है।
कुछ नही मुश्किल अगर हम ठान लें
इस जगत में जो भी है आसान है।
आदमी के पतन का यह मूल कारण
दम्भ ईर्ष्या लोभ व अभिमान है।
मिट गया था वंश रावण दुष्ट का
भ्रम उसे था की उसे वरदान है।
©लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
लख़नऊ
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