रविवार, 13 जनवरी 2019

मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम

मैं हूँ अब भी खड़ा उसी रस्ते
जिससे होकर कभी गए थे तुम।

यार छोडो भी वस्ल की बातें
उस समय तो नए नए थे तुम।

एक झटके में रूबरू हो कर
एक झटके में हट गए थे तुम।

मेरी ग़ज़लों में साथ हो मेरे
मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम।

मैं भी खामोशियों में रहता हूँ
जबसे खामोश हो गए थे तुम।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

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