आज रेडियो दिवस है ,फेसबुक से पता चला और फिर बचपन की यादें दिमाग में धीरे धीरे आने लगीं। बचपन में दरवाजे पर लाइन से खटिया बिछती थी रात को गर्मी के दिनों में सब लोग बाहर ही सोते थे । लाला बाबा के रेडियो से आवाज़ आती थी "प्रस्तुत है समाचार संध्या ......" और सब लोगों के कान खड़े हो जाते थे "पिन ड्राप साइलेन्स" होता था अगले 15 मिनट तक और फिर समाचारों की समीक्षा में लम्बे लम्बे व्याख्यान सुनने को मिलते थे। पर हमारा मन तो लगा रहता था 6 बजे आकाशवाणी गोरखपुर से आने वाली कहानी और 8 बजे के हवामहल प्रोग्राम पर। बहुत ध्यान से सुनते थे हम इतना ध्यान से तो आज यूट्यूब भी नहीं देखते। लाला बाबा का रेडियो रातभर चलता था । कभी अपने आप बीबीसी बजने लगता कभी बांग्ला कभी असमिया लेकिन कभी बन्द नहीं होता पूरी रात चलता था । सभी लोग सो जाते थे पर रेडियो चलता रहता था आखिर में तो स्टेशन बन्द होने पर टूं - टूं बजता था। लाला बाबा सुबह मुझे सात बजे ही आवाज देकर बुलाने लगते क्योंकि 7 बजकर 10 मिनट पर रामचरितमानस आता था रेडियो पर। रामचरितमानस के इन्तजार में मैं 7 बजे से अगले दस मिनट तक संस्कृत समाचार सुनता था , सबसे अधिक ख़ुशी मिलती थी " इति वार्ता: " सुनने पर। लाल बाबा और रेडियो की अनगिनत कहानियाँ आज याद आ रही हैं, लेकिन फिर कभी..। अब रेडियो सुनते भी नहीं है हाँ कभी कभी मोबाइल में ही हवामहल सुन लेते हैं लेकिन लाला बाबा के रेडियो की बात ही और थी। चाहे 2002 के चुनाव में कांग्रेस की जीत की खबर हो या 2003 के वर्ल्डकप में भारत की हार ये सब हमें लाल बाबा के रेडियो से ही पता चला था। खैर अब तो न लाला बाबा हैं और न ही उनका रेडियो। दोनों बहुत याद आते हैं।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"