दो नैन तुम्हारे ऐसे जिनमे डूबे सात समंदर
कितनी बाते छुपी हुईं हैं इन नयनो के अंदर.
जैसे छोटा बच्चा कोई देखे एक खिलौना
जैसे नील गगन तारों का लगता एक बिछौना
जैसे सारी दुनिया की आपाधापी स्थिर हो
जैसे सुख दुःख वाली बातें इस दुनिया में चिर हो.
जैसे दुनिया के ख्वाबो की इसमें हो एक दुनिया
इस दुनिया से कितनी अच्छी है आँखों की दुनिया
इन आँखों की दुनिया का एक कोना लेकिन नम है
यूँ कह लें दो आँखों के बिन दो आँखे पुरनम हैं।
वो दो आँखे बसी हुई इन दो आँखों के अंदर
कितनी बातें छुपी हुई हैं दो आँखों के अंदर।
दो नैन इधर ऐसे हैं जो उन दो नयनो को चाहें
उन नयनों को गहना चाहें इन नयनो की बाहें.
दो नैन तुम्हारे ऐसे जिनमे डूबे सात समंदर
कितनी बाते छुपी हुईं हैं इन नयनो के अंदर.
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"