मैंने देखा एक ताजमहल
हंसता- मुस्काता ताजमहल
बाहों में आता ताजमहल
जुल्फें बिखराता ताजमहल।
एक पल में दुनिया में आकर
दुनिया बन जाता ताजमहल
तुमने देखा चुप ताजमहल
हमने बतियाता ताजमहल।
जग से बिलकुल ही जुदा- जुदा
खुद पर इतराता ताजमहल
मेरे हाथों पर उंगली से
एक चित्र बनाता ताजमहल।
मेरी दुनिया में संग मेरे
मुझमे खो जाता ताजमहल
अपने सपनों की एक फसल
मुझमे बो जाता ताजमहल।
देखा मैंने मुझपर अपना
अधिकार जताता ताजमहल
बस एक हँसी में ले जाता
हर दर्द चुराता ताजमहल।
तुमने पत्त्थर वाला देखा
मैंने मिट्टी का ताजमहल
कंधे पर मेरे सर रखकर
आंसू बरसाता ताजमहल।
देखा मैंने चलकर आते
फिर देखा जाता ताजमहल
एक दिन मेरी एक गलती पर
मुझसे गुस्साता ताजमहल।
I
पहले बतियाते देखा था
फिर चुप हो जाता ताजमहल
मेरी दुनिया में आकर फिर
दुनिया से जाता ताजमहल।
पहले था साथ हक़ीकत में
अब ख्वाब में आता ताजमहल
होठों पर कुसुम खिलाकर फिर
आंसू दे जाता ताजमहल ।
पहले चलता था साथ मगर
अब राह दिखाता ताजमहल
आने जाने वाली दुनिया
मुझको दिखलाता ताजमहल।
अब भी ऐसा लगता है कि""
मुझको अपनाता ताजमहल
आकर कहता एक बार पुनः
कानो में "दीपक" ताजमहल।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"