ये किस्से जो अक्सर सुनाता हूँ उनमें
है शामिल फ़क़त रूह, जिस्म नहीं हैं।
नहीं यार कोई कहानी नहीं है
तुम्हें दिख रहा है जो आँखों में पानी
अरे यार वो कोई पानी नहीं है।
ये मुमकिन है पलकों के बांधो से रिसकर
कोई ख्वाब पानी का हमशक्ल हो कर
किसी एक कोने को नम कर रहा हो
और आँखों से एक ख्वाब कम कर रहा हो
ये कहते हैं अब मुझको आज़ाद कर दो।
अरे यार हद है!
जो दिल्ली की आबो हवा में रहोगे
और सीपी की सड़कों पे भटका करोगे।
किसी हाथ में हाथ को देखकर जब
अंदर ही अंदर से सिसका करोगे
उसी दिन पता फिर चलेगा तुम्हे ये
की सच में ये कोई कहानी नहीं है
जो आँखों से निकला , वो पानी नहीं है।
किसी रात को सोते सोते अचानक
जो सपने में चेहरा कोई देख लोगे
उठोगे तो टूटा हुआ एक सपना
कहेगा किसी और के साथ हूँ मैं।।
यूँ ही ज़िन्दगी के हरेक मोड़ पर जब
वही ख्वाब आँखों से रिसता रहेगा
कोई दर्द ताउम्र चुभता रहेगा
उसी दिन पता फिर चलेगा तुम्हे ये
की सच में ये कोई कहानी नहीं है
जो आँखों से निकला , वो पानी नहीं है।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र"दीपक"