हमारे दरमिया कुछ था अगर तो
कदम या दो कदम का फासला था।
हमें उस वक़्त छोड़ा था किसी ने
हमें जिस वक़्त उससे राब्ता था।
हमारी आँख से निकला था सपना
हमें बस आँख भर से वास्ता था।
हमें उस मोड़ पर लायी वो लड़की
जहाँ ना रहगुज़र ना रास्ता था।
चलो अच्छा हुआ कुछ ख्वाब टूटे
हकीक़त में यही वो चाहता था।
©लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
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