नये साल में बोलो क्या कुछ नया है
कैलेंडर नया है या तुम भी नए हो।
यहाँ आज भी सब पुराना है वैसे
विगत वर्ष में तुमने देखा था जैसे
वहीं उस जगह पर खड़ा रह गया हूँ
जमीं में गड़ा था गड़ा रह गया हूँ।
पुराने -नए का न कुछ भान अब भी
न पहले समझ थी समझना है अब भी
अभी भी है कश्ती लहर के भरोसे
मेरी सांझ है दोपहर के भरोसे
कटी दोपहर है शज़र के भरोसे
नज़र का भरोसा नज़र के भरोसे।
कई मील साथी चला हूँ अभी तक
तुम्हारे बिना ही तुम्हारे भरोसे
नये वर्ष में कुछ बदल भी गया तो
कोई खोटा सिक्का जो चल भी गया तो
क्या फिर दौर वैसा कभी आ सकेगा
गया है जो वापस क्या वो आ सकेगा
चलो गर सभी खुश हैं तो साल अच्छा
अगर तुम हो अच्छे मेरा हाल अच्छा
विगत में क्या खोया क्या आगत में पाना
न इसमें कभी अस्ल मक़सद भुलाना।
चल एक बार कश्ती को ले चल भँवर में
ले पतवार फिर एक दफा अपने कर में
क्या कुछ गुल खिलाती है ये ज़िन्दगी अब
चल अब चल के देखेंगे अगले बरस में।