देख रहा हूँ कल से तेरी आँखों में
इन आँखों में प्यार दिखाई देता है।
तेरी जुल्फें आगे को जब होती हैं
मुझको तुझमे ताज दिखाई देता है।
तेरे लब को छूकर मैंने जाना है
प्यासे को क्यों आब दिखाई देता है।
सबको तुझमे सबकुछ दिखता होगा पर
मुझको तुझमे चाँद दिखाई देता है।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें