ज़िन्दगी भी कमाल है मालिक
इश्क़ मौलिक सवाल है मालिक।
जिसने देखा वो देखता ही रहा
कैसा हुश्न -ओ- जमाल है मालिक।
यूँ वो चलती है जैसे लगता है
एक नदिया की चाल है मालिक।
वो जो चन्दा के जैसा रौशन है
हुश्ने जाना का गाल है मालिक।
उसके लब पे जो मुस्कुराहट है
सच में बिलकुल बवाल है मालिक
लोकेन्द्र मणि मिश्र " दीपक"
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