बुधवार, 29 जून 2016

ज़िन्दगी तक आ गए

कल सफर हमने शुरू की आखिरी तक आ गये
दोस्ती से चलते - चलते आशिकी तक आ गये।

अब यहाँ  जज़्बात रौशन हो रहे हैं शब्द से
तीरगी को बेधते हम रौशनी तक आ गये।

अच्छे दिन नेताओ के इससे क्या अच्छे आएंगे?
खद्दरों के  छोड़  कुर्ते रेशमी  तक आ गये।

मौत से लड़ता रहा जो आज वो भी खुश दिखा
क्योंकि आखिर मरते -मरते ज़िन्दगी तक आ गये।

© लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शनिवार, 4 जून 2016

मथुरा काण्ड

जब शाषन लाचार खड़ा हो दुराग्रही हत्यारों से
सिंहासन का गठबंधन जब होता हो गद्दारों से
जब जब जनता वोट बैंक लड़ाई जाती हो
डी एस पी , एस ओ की जब जब बली चढ़ाई जाती हो
याद रखो यादव जी सत्ता छिनने वाली होती है
जनता घट के हर पापों को गिनने वाली होती है।
सत्याग्रह के नाम पे काला धब्बा मथुरा की घटना
खलता है सर्वाधिक सत्ता का डरकर पीछे हटना
यादव जी सुनलो अब भी कर्तव्य निभाना शुरू करो
या जाने के दिन की उल्टी गिनती गिनना शुरू करो
जो भी दोषी हैं उनको पकड़ो फांसी पर लटका दो
जाते -जाते एक बार बस अपराधों को झटका दो
शाम -ए- अवध बनाओ मधुरिम इसमे नही बुराई है
जाकर गाँवों को देखो बिजली दस दिन पर आई है
रोज नए पत्थर लगवाओ राजभवन के सड़को पर
उनकी भी हालत पूछो जो भूखे बैठे सड़को पर।
कम्पेन्सेसन देने वाली नौटँकी को बन्द करो
अपराधी चोरो हत्यारो से खुलकर तुम द्वन्द करो

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

गुरुवार, 2 जून 2016

इंजीनियरिंग पार्ट 4

दो कदम और उसके बाद कदम विराम । इंजीनियरिंग छात्र के जिंदगी में दो मौका आता है खुशियों का एक जनवरी में और दूसरा जून में । इन दो महीनो में सबसे पहले हम अपनी मोटी मोटी किताबो का विधिपूर्वक विसर्जन करते हैं और ज़िन्दगी जीते हैं । हाँ भाई बाक़ी के महीनो में तो बस ज़िन्दगी "काटते" हैं। हॉस्टल वालों को ये सुकून रहता है की  छोटी गंगा के नाम पर जो कढ़ी परोसा जाता है उससे निजात मिलेगी लेकिन जो रूम  लेके रहते हैं उन्हें सबसे महान कार्य "बर्तन माँजने" से निज़ात के बारे में सोंचते ही कुछ कुछ होने लगता है। कहा जाता है आप जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं अगर ऐसा ही रहा तो हम सब तो बर्तन माँजने वाला बन जाएंगे ।  यही सोंचते रहते हैं की रूम पे जा के अभी बर्तन धोना है ये करना है वो करना है आदि इत्यादि। कल मैट्रोलोजी का पेपर दे के आ रहे थे तब तक राहुल से उनके "उन्होंने" पूछा पेपर कैसा हुआ? लड़का फट पड़ा। कहा बिलकुल तुम्हारे जैसा था मतलब समझ में ही नही आया की आखिर चाहता क्या है । जैसे तुम दिमाग खाती हो वैसे  ही ....... सॉरी सॉरी ।  बस शाम को व्हाट्सऐप पर मैसेज आया हाऊ डेअर यू टॉक मी लाइक दैट इन फ्रंट ऑफ़ माय फ्रेंड्स .. ब्ला ब्ला ब्ला। बेचारा शाम से ही मेला सोना मेला बाबू कर रहा है।
इसी आशा के साथ की राहुल का बाबू मान जाए और कल का पेपर अच्छा हो कलम विराम।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"