कल सफर हमने शुरू की आखिरी तक आ गये
दोस्ती से चलते - चलते आशिकी तक आ गये।
अब यहाँ जज़्बात रौशन हो रहे हैं शब्द से
तीरगी को बेधते हम रौशनी तक आ गये।
अच्छे दिन नेताओ के इससे क्या अच्छे आएंगे?
खद्दरों के छोड़ कुर्ते रेशमी तक आ गये।
मौत से लड़ता रहा जो आज वो भी खुश दिखा
क्योंकि आखिर मरते -मरते ज़िन्दगी तक आ गये।
© लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"