बुधवार, 29 जून 2016

ज़िन्दगी तक आ गए

कल सफर हमने शुरू की आखिरी तक आ गये
दोस्ती से चलते - चलते आशिकी तक आ गये।

अब यहाँ  जज़्बात रौशन हो रहे हैं शब्द से
तीरगी को बेधते हम रौशनी तक आ गये।

अच्छे दिन नेताओ के इससे क्या अच्छे आएंगे?
खद्दरों के  छोड़  कुर्ते रेशमी  तक आ गये।

मौत से लड़ता रहा जो आज वो भी खुश दिखा
क्योंकि आखिर मरते -मरते ज़िन्दगी तक आ गये।

© लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

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