गुरुवार, 17 मार्च 2016

ग़ज़ल

हमारी उमर है अभी उलझनों की
नये मुश्किलों की नए हसरतों की

ये कुछ कह रहा है जरा इसकी सुन लो
न टालो कभी बात यूँ धड़कनों की।

कठिन रास्तो पर भी चलना सिखाया
यही बात है ख़ास हर मंजिलों की।

कभी जीतने ही नही देगी तुमको
रही गर जरा भी कमी हौंसलो की

नेह का एक "दीपक" जला कर देखो
मिटेगी सदा तीरगी नफ़रतों की।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
©lokendradeepak.blogspot.com

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