हमारी उमर है अभी उलझनों की
नये मुश्किलों की नए हसरतों की
ये कुछ कह रहा है जरा इसकी सुन लो
न टालो कभी बात यूँ धड़कनों की।
कठिन रास्तो पर भी चलना सिखाया
यही बात है ख़ास हर मंजिलों की।
कभी जीतने ही नही देगी तुमको
रही गर जरा भी कमी हौंसलो की
नेह का एक "दीपक" जला कर देखो
मिटेगी सदा तीरगी नफ़रतों की।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
©lokendradeepak.blogspot.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें