सोमवार, 21 मार्च 2016

ग़ज़ल


क्यों नजर में कुछ के खलती है ग़ज़ल
इसलिए की सच ही कहती है ग़ज़ल

नफरतों के बीज ना बच पाएंगे
आशिकों के दिल में पलती है ग़ज़ल

छोड़ कर सारे विवादों को सदा
नित नए आकाश चढ़ती है ग़ज़ल

दिल कभी जब टूट जाता है तभी
शब्द बन कागज पे ढलती है ग़ज़ल

राज होगा ही नहीं अंधियार का
बनके "दीपक" तिमिर हरती है ग़ज़ल

~~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

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