क्यों नजर में कुछ के खलती है ग़ज़ल
इसलिए की सच ही कहती है ग़ज़ल
नफरतों के बीज ना बच पाएंगे
आशिकों के दिल में पलती है ग़ज़ल
छोड़ कर सारे विवादों को सदा
नित नए आकाश चढ़ती है ग़ज़ल
दिल कभी जब टूट जाता है तभी
शब्द बन कागज पे ढलती है ग़ज़ल
राज होगा ही नहीं अंधियार का
बनके "दीपक" तिमिर हरती है ग़ज़ल
~~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
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