गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

एक संस्मरण :आद्या चचा

आद्या चचा नहीं रहे.....आज सुबह वो इस दुनिया को छोड़ कर उस दुनिया मे चले गये जहां सबको एक न एक दिन जाना ही है..
आज से सात आठ साल पहले का एक दृश्य आंखों के सामने घूम रहा है। रामलीला चल रही थी  धनुषयज्ञ का प्रकरण था। तमाम योद्धा धनुष को हिला भी नहीं सके थे। जनक जी का संवाद आया " हे द्वीप- द्वीप के राजागण हम किसे कहें बलशाली है......." । ये एक पिता की आवाज थी जिसके पुत्री के स्वयंवर में किसी भी वीर ने उसकी प्रतिज्ञा के अनुरूप शिव के महान धनुष को तोड़ना तो दूर हिला भी नहीं सके थे। ये संवाद इतना सजीव प्रतीत होता था कि सब इसमें खो जाते थे। और संवाद के अंत के जनक जी के आंखों में पानी हुआ करता था । ये जनक थे "श्री आद्यानन्द मिश्र" यानी कि "आद्या चचा" ।
चाहे मारीच का रोल हो या जनक का या फिर विश्वामित्र का ये सब मे फिट थे।
गांव में कुछ लोग इन्हें नेता जी भी कहते थे, ये अकेले ऐसे नेता थे जो कभी भी चुनाव नहीं लड़े। लेकिन जिस भी प्रत्यासी की तरफ खड़े हो जाते उसका पलड़ा भारी हो जाता था। गांव के हर काम मे आगे रहने वाले चाहे राजनीति हो या किसी के कोर्ट कचहरी का काम सबमे साथ देने वाले गांव के ये इकलौते आदमी थे। संविधान की अनगिनत धाराएं इन्हें मुंहजबानी याद थी। एकबार किसी बात पर इनकी दरोगा से बहस हो गई, इन्होंने कई बार दरोगा जी को समझाया लेकिन वो समझने को तैयार नहीं था और भरे बाज़ार में आपने उसे थप्पड़ जड़ दिया था क्योंकि यहां बात सम्मान की थी और गांव की।

ठीक ठीक समय याद नहीं आ रहा शायद 2013 की बात है । में उनके पास गया और पूछा कि चचा आज जनक बनेंगे आप? आपकी तबियत तो ठीक नहीं है।
आप कांप रहे थे, तबियत खराब थी लगभग 1 हफ्ते पहले ही मेडिकल कॉलेज से आये थे लेकिन आपने कहा था कि कोशिश करते हैं और आपने कोशिश की आप जनक बने और फिर वही दृश्य खड़ा हो गया। डायलॉग का अंत आते आते आप की आवाज रुँध गयी थी। आंखों में पानी तब भी था और दर्शक तब भी स्तब्ध खड़े थे उसके बाद फिर कभी धनुषयज्ञ के दिन वैसा दृश्य देखने को नहीं मिला। अब न तो वैसी आवाज है और न ही वो दम।
वो आपका अंतिम अभिनय था रामलीला में । अब चलने और बोलने में भी हांफने लगे थे आप। अस्थमा हो गया था और उसके साथ साथ हृदय रोग और तमाम सारी बीमारियाँ।
गांव में कोई भी पंचायत आपके बिना नहीं होती थी। हर पंचायत में जो एक आदमी हमेशा मौजूद रहता था वो आप थे। कभी भी अपने कहे से डिगते नहीं थे जो कहा वो कहा फिर कोई उसे काट नहीं सकता था। क्योंकि कोसी के पास सामर्थ्य नहीं था आपके तर्कों को काटने का। एक निष्पक्ष निर्भीक और अटल नेता तथा एक   सधा हुआ अभिनेता आप ही थे। मुझे याद है 2007 में जब मैं 13 वर्ष का था तो सुरेश चचा में मुझे अंगद रावण सम्वाद के दिन अंगद बनने को कहा था। चूंकि में छोटा था तो लोगों ने कहा कि एक बार रिहर्सल हो जाये , कुबेर बाबा के ओसारा में गांव के कई लोग इकट्ठा हुए जिसमे सुरेश चचा, कमलेश भईया, छोटकू भईया, रामनोहर भईया , महेश बाबा और आप भी थे। आप थोड़ा लेट आए थे और आपने कहा कि इतने छोटे लड़के को तुमलोग बना रहे हो इसको कुछ याद भी है ये ठीक से बोल भी पायेगा। इस पर सुतेश चचा ने कहा कि हां ये बोल लेगा अभी हमलोग रिहर्सल कर के देखे हैं। फिर आपने मेरे टेस्ट लिया था एक दो चौपाई का अर्थ पूछा था आपने और राधेश्याम रामायण का डायलॉग सुना था, जब आप आश्वस्त हो गए तब लगभग रात को 12 बजे रिहर्सल बन्द हुआ था। और अगले दिन अंगद रावण संवाद यादगार रहा था।
आपकी पीढ़ी में ऐसा कोई भी नहीं है जो आपका स्थान ले सके और हमारी पीढ़ी में तो ऐसा कोई सवाल ही नहीं उठता। आपका जाना पूरे गांव के लिये एक अपूरणीय क्षति है। अब हमें आपकी आवाज में "हे द्वीप- द्वीप के राजागण हम किसे कहें बलशाली है......" सुनने को नहीं  मिलेगा। ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे और पूरे गांव को इस दुख से उबरने की शक्ति।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर संस्मरण है ये...बधाई हो लोकेन्द्र जी। मैं यहां "हे द्वीप द्वीप के राजागण" वाले डायलॉग को गूगल पे ढूंढता हुआ यहां पहुँचा हूँ। क्योंकि, करीब 26-27 वर्ष पहले मैंने भी अपने गाँव की रामलीला में (केवल 1 बार) राजा जनक का रोल किया था। परंतु, मेरा पहला अनुछेद "हे द्वीप द्वीप के राजागण" पूर्ण होते ही लक्ष्मण जी अपने डायलॉग लेकर बीच में कूद पड़े और मेरा दूसरा अनुछेद बिना बोले ही रह गया था। असल में, लक्ष्मण जी को 'पृथ्वी वीरों से खाली है' वाली बात बुरी लगी और उनके कई जोश भरे डायलॉग थे मेरे बाद; शायद इसीलिए लक्ष्मण मेरा आधा अनुछेद का गया। ;-)

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    1. है द्वीप द्वीप के राजागण हम किसे कहें बलशाली
      है।
      हमको तो यह विश्वास हुआ पृथ्वी वीरों से खाली है।
      पहले यदि यही पता होता तो यह बेबसी नहीं होती
      हम करते नहीं प्रतिज्ञा यह तो ऐसी हंसी नहीं होती।
      अब तोड़े अपने प्रण को हम तो धर्महानि है लज्जा है
      सीता को कंवारी रहना है विधि ने विचार कर रक्खा है।
      …..
      आपका धन्यवाद जो आपने प्रतिक्रिया दी और इसे पढ़ा।

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  2. Please Provide Full Dialogue of Janak, Laxman ,Ram and Parshuram....
    This is My favourite Sambaad....
    But never find it Anywhere...
    Google pe bhi nii milta ye....

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