गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

ज़िन्दगी

एकबार चलि गईल त ना आवेले ज़िन्दगी

खेला अज़ब ग़ज़ब के देखावेले ज़िन्दगी
एक बार चलि गईल त ना आवेले ज़िन्दगी

केतनो अमीर होखे केतनो गरीब होखे
सभकर अईंठि के कान नचावेले ज़िन्दगी।

खोजला प ना किताब में मिले जवन कबो
अदमी के हर ऊ पाठ पढ़ावेले ज़िन्दगी।

नफ़रत के बोरा बान्हि के कुईयाँ में फेंकि द
सबसे करs तूँ प्यार बतावेले ज़िन्दगी।

आइल बा जे ऊ जाई केहूs भुलाय ना
जा-जा के रोज सबके सीखावेले ज़िन्दगी।

~लोकेंद्र मणि मिश्र "दीपक"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें