है जो ऊँचा आसमां से और गहरा सिंधु से
जो करे निर्माण जग का इक अकेले बिंदु से
तन हिमालय सा , हृदय गंगा की पावन धार है
वो जगत के हर मनुज के ज्ञान का आधार है।
जिसके सम्मुख देवता भी सिर झुकाते आ रहे हैं
और जिसकी दिव्यता से पार भव के जा रहे हैं
जो खड़ा है बन के पत्थर नींव का ,संसार के
जिसके सम्मुख हर समस्या हाथ जोड़ी हार के।
कर रहा उनको नमन " दीपक" झुकाए माथ को
और विनती है यही हे नाथ गहिए हाथ को।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
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