ये सिंहो वाला तेवर है झुकता है नहीं झुकाने से
कोई कितना भी दादा हो ये डरता नहीं जमाने से।
हो बात राष्ट्र के रक्षा की सर्वस्व समर्पण करता है
मौका पड़ता है तो तन-मन- धन सबकुछ अर्पण करता है।
हम शांति चाहने वाले हैं हम भले बुद्ध पर मरते हैं
इसका यह कतई अर्थ नहीं हम किसी युद्ध से डरते हैं।
तुम अगर प्यार से मानो तो फिर प्यार दिखाना आता है
अन्यथा हमें तुमसे अच्छा तलवार चलाना आता है।
छुपकर के वार किया तुमने उसका फल तुम्हे दिखाया है
घर में घुसकर इन सिंहो ने तुम सब को मार गिराया है।
ये खेल हमारा था केवल तुमको इतना बतलाना था
है बाकी पूरी फ़िल्म अभी ट्रेलर बस तुम्हे दिखाना था।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
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