मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

चल अब चलके देखेंगे अगले बरस में

नये साल में बोलो क्या कुछ नया है
कैलेंडर नया है या तुम भी नए हो।

यहाँ आज भी सब पुराना है वैसे
विगत वर्ष में तुमने देखा था जैसे
वहीं उस जगह पर खड़ा रह गया हूँ
जमीं में गड़ा था गड़ा रह गया हूँ।

पुराने -नए का न कुछ भान अब भी
न पहले समझ थी समझना है अब भी

अभी भी है कश्ती लहर के भरोसे
मेरी सांझ है दोपहर के भरोसे
कटी दोपहर है शज़र के भरोसे
नज़र का भरोसा नज़र के भरोसे।

कई मील साथी चला हूँ अभी तक
तुम्हारे बिना ही तुम्हारे भरोसे

नये वर्ष में कुछ बदल भी गया तो
कोई खोटा सिक्का जो चल भी गया तो
क्या फिर दौर वैसा कभी आ सकेगा
गया है जो वापस क्या वो आ सकेगा

चलो गर सभी खुश हैं तो साल अच्छा
अगर तुम हो अच्छे मेरा हाल अच्छा
विगत में क्या खोया क्या आगत में पाना
न इसमें कभी अस्ल मक़सद भुलाना।

चल एक बार कश्ती को ले चल भँवर में
ले पतवार फिर एक दफा अपने कर में
क्या कुछ गुल खिलाती है ये ज़िन्दगी अब
चल अब चल के देखेंगे अगले बरस में।

©® लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

बुधवार, 4 दिसंबर 2019

दिल की दुनिया कैसी दुनिया होती है

अपने मन को बहलाना तो पड़ता है
दिल को झूठे ख़्वाब दिखाना पड़ता है

जहां शिकारी ने कतरा पर चिड़िया का
चिड़िया का अब वहीं ठिकाना रहता है

दिल की दुनिया कैसी दुनिया होती है
इसको कितना कुछ समझाना पड़ता है

ख़्वाब अगर मार जाते हैं तो फिर तय है
आँख के रस्ते बाहर आना पड़ता है.

©लोकेंद्र मणि मिश्र "दीपक"

शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2019

सुमित्रानंदन पंत: प्रकृति के सुकुमार कवि

मुझे कक्षा आठ में पढ़ी एक कविता याद आ रही

फैली खेतों में दूर तलक

मख़मल की कोमल हरियाली,

लिपटीं जिससे रवि की किरणें

चाँदी की सी उजली जाली !

तिनकों के हरे हरे तन पर

हिल हरित रुधिर है रहा झलक,

श्यामल भू तल पर झुका हुआ

नभ का चिर निर्मल नील फलक।

रोमांचित-सी लगती वसुधा

आयी जौ गेहूँ में बाली,

अरहर सनई की सोने की

किंकिणियाँ हैं शोभाशाली।

उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध,

फूली सरसों पीली-पीली,

लो, हरित धरा से झाँक रही

नीलम की कलि, तीसी नीली।

विश्वास मानिये पूरी कविता याद थी मुझे….ये उसका एक अंश मात्र है। एक और कविता मैने स्कूल में पढ़ी थी "ये धरती कितना देती है".

अब आते हैं उस बात पर की पंत जी को प्रकृति का सुकुमार कवि क्यों कहा जाता है?

पंत जी का जन्म अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में हुआ था। उत्तराखंड की प्राकृतिक सुन्दरता बताने की जरूरत नहीं है। अब चूंकि उनका बचपन ही प्रकृति की गोद मे बीता तो निश्चित है कि उसका असर उनके काव्य पर भी पड़ना ही था। यह एकदम सत्य बात है कि हम जिस परिवेश में रहते हैं उसका अच्छा- बुरा प्रभाव हमपर पड़ता है ।तो हम कह सकते हैं कि प्रकृति से निकटता के कारण ही उनकी रचनाओं में प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम वर्णन देखने को मिलता है और यही कारण है कि उन्हें "प्रकृति का सुकुमार कवि" कहा जाता है।

पंत छायावाद के कवि थे। छायावादी कवियों की कल्पनाशीलता देखते ही बनती है। स्वयं पंत जी का भी यही मानना था कि वो प्रकृति के बहुत करीब रहे और प्रकृति को बैठकर घंटो देखा करते और यहीं से उनकी कविताओं ने प्रकृति के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ। दरअसल कविता हमारे मनोभावों का ही शब्दचित्र है ।

पंत प्रकृति के सौन्दर्य के सम्मुख नारी के रूप सौंदर्य को उतना महत्व देते नहीं दिखाई देते। आप स्वयं देखिये..

छोड़ द्रुमों की मृदु छाया

तोड़ प्रकृति से भी माया

बाले तेरे बाल – जाल में

उलझा दूं में कैसे लोचन ?

यहाँ वो नायिका से कहते हैं कि " मैं वृक्षों की इस मृदुल छाया और प्रकृति के मोह को छोड़कर तेरे केशों के जाल में अपनी आँखें कैसे उलझा लूं।"

परंतु ऐसा नहीं है कि प्रकृति के अलावा अन्य विषयों पर पंत जी ने नहीं लिखा है। आध्यात्म और देशप्रेम पर भी पंत की कलम उतनी प्रवाहमान है। वो चर्चा फिर कभी..

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2019

अथ् श्री UPSSSC कथा

अथ् श्री UPSSSC कथा

ये एक पेपर भर नहीं है बल्कि लाखों छात्र - छात्राओं का भरोसा है जो हर रोज थोड़ा -थोड़ा  लीक हो रह है।

उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के द्वारा "लोअर पी सी एस" की परीक्षा कराई गई। दो दिन क्रमशः दो - दो शिफ्टस् में परीक्षा हुई। जैसा कि परिक्षाओं में होता है बेल्ट, घडी आदि नहीं ले जा सकते तो वो इसमें भी हुआ। प्रदेश में एक योगी मुख्यमंत्री हैं और देश में कर्मयोगी प्रधानमंत्री हैं। देश में विकास संतृप्त अवस्था में पहुँच गया है। संतृप्त अवस्था का सीधा मतलब समझ लीजिये कि विकास इतना हो चुका है कि अब और विकास संभव ही नहीं है। कुछ महीने पहले ग्राम विकास अधिकारी का पेपर हुआ था । जैसे कि सबको पता है प्रश्नपुस्तिका भी जमा कर ली जाती है परीक्षा के बाद और जिस परीक्षा भवन में आप बेल्ट और घड़ी तक नहीं ले जा सकते वहां से पेपर का फोटो खींच के वायरल हो जाता है। ठीक वैसे ही लोअर के एग्जाम में हुआ ३० सितम्बर के फर्स्ट शिफ्ट का पेपर व्हाट्सऐप, फेसबुक पर घूम रहा है। ये पेपर महज कुछ प्रश्न नहीं है बल्कि लाखों छात्रों का टूटता हुआ भरोसा है। कुछ लोग ज्ञान देंगे की इसमें सरकार को क्या दोष!कृपया वो लोग दूर ही रहें और टीवी पर कब होगा पाकिस्तान पर हमला और जैसे प्रोग्राम देखें।

कभी सेकंड  शिफ्ट का पेपर फर्स्ट शिफ्ट में बाँट दिया( PCS २०१७- GIC इलाहाबाद) जाता है कभी पेपर आउट हो जाता है मतलब हद है लापारवाही की। नकल रोकने के नाम पर बनारस वालों को सेण्टर गाज़ियाबाद और मेरठ  वालों का सेण्टर बनारस भेजा जा रहा है और फिर भी कोई असर नहीं। सही है सब रामराज आ गया है, भारत की GDP विश्व के GDP के दो गुनी हो गई है, देश में बुलेट ट्रैन दौड़ रही है बनारस से मेरठ  जाने वाले छात्र चैन पुल्लिंग कर के बैठ जाएं जल्दी से।

सब चंगा सी!
Everything is fine!

~लोकेन्द्र मणि मिश्रा "दीपक"

गुरुवार, 26 सितंबर 2019

हमें उस मोड़ पर लायी वो लड़की

हमारे दरमिया कुछ था अगर तो
कदम या दो कदम का फासला था।

हमें उस वक़्त छोड़ा था किसी ने
हमें जिस वक़्त उससे राब्ता था।

हमारी आँख से निकला था सपना
हमें बस आँख भर से वास्ता था।

हमें उस मोड़ पर लायी वो लड़की
जहाँ ना रहगुज़र ना रास्ता  था।

चलो अच्छा हुआ कुछ ख्वाब टूटे
हकीक़त में यही वो चाहता था।

©लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शनिवार, 13 जुलाई 2019

टूटा हुआ एक सपना

ये किस्से जो अक्सर सुनाता हूँ उनमें
है शामिल फ़क़त रूह, जिस्म नहीं हैं।
नहीं यार कोई कहानी नहीं है
तुम्हें दिख रहा है  जो आँखों में पानी
अरे यार वो कोई पानी नहीं है।
ये मुमकिन है पलकों के बांधो से रिसकर
कोई ख्वाब पानी का हमशक्ल हो कर
किसी एक कोने  को नम कर रहा हो
और आँखों से एक ख्वाब कम कर रहा हो
ये कहते हैं अब मुझको आज़ाद कर दो।
अरे यार हद है!
जो दिल्ली की आबो हवा में रहोगे
और सीपी की सड़कों पे भटका  करोगे।
किसी हाथ में हाथ को देखकर जब
अंदर ही अंदर से सिसका करोगे
उसी  दिन पता फिर चलेगा तुम्हे ये
की सच में ये कोई कहानी नहीं है
जो आँखों से निकला , वो पानी नहीं है।
किसी रात को सोते  सोते अचानक
जो सपने में चेहरा कोई देख लोगे
उठोगे तो टूटा हुआ एक सपना
कहेगा किसी और के साथ हूँ मैं।।
यूँ ही ज़िन्दगी के हरेक मोड़ पर जब
वही ख्वाब आँखों से रिसता रहेगा
कोई दर्द ताउम्र चुभता रहेगा
उसी  दिन पता फिर चलेगा तुम्हे ये
की सच में ये कोई कहानी नहीं है
जो आँखों से निकला , वो पानी नहीं है।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र"दीपक"

शनिवार, 1 जून 2019

UPPSC/UPSSSC: भ्रष्टाचार, छात्रो का भविष्य और तुलसीदास की प्रासंगिकता


कोउ नृप होउ हमहि का हानी।
चेरि छाड़ि अब होब कि रानी॥

तुलसी बाबा की प्रासंगिकता किसी समयकाल में कम नहीं होने वाली।
इलाहाबाद की सडको पर प्रतियोगी छात्रों पर प्रशासन द्वारा डंडे बरसाना तुलसी के उपरोक्त दोहे की वर्तमान प्रासंगिता सिद्ध करता है। देश में एक नयी सरकार है जिसे जनता ने चुना है।स्पष्ट बहुमत की सरकार लचर विपक्ष और देश में व्यक्तिवाद के पूजन के इस सुनहरे दौर में आइये हम मन्दिर- मस्जिद, काशी- काबा खेल लें। छात्रों पर फिर कभी ध्यान देंगे या न भी दें तो चलेगा। कारण? कारण वही भक्ति है। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग तथा उत्तर प्रदेश अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के साथ यह पहली बार नहीं हुआ जब उंगली उठी हो। ऐसा होता रहा है। पिछले 3-4 वर्षों ने शायद ही उत्तर प्रदेश में कोई परीक्षा हुई हो जिसमे पेपर लीक न हुआ हो या सोल्वर गैंग के पकड़े जाने की खबरे न आई हो।
वर्तमान में परीक्षा नियन्त्रक अंजू कटिहार  के गिरफ्तारी होने के बाद लगभग 10 परिक्षाएं टल गयी हैं। हमारे यहाँ परम्परा है 17  का मैन्स 18 में इंटरव्यू 19 में एंड सो ऑन....
UPSSSC में एक फॉर्म निकलता है 2016 में जुनियर अस्सिटेंट का परीक्षा होती है, स्किल टेस्ट होता है इंटरव्यू होता है फिर सरकार बदलती है दुबारा एक साल के इंतज़ार के बाद इंटरव्यू होता है फिर 2019 में ज्वाइनिंग होती है। एक क्लर्क लेवल का एग्जाम आप तीन साल में पूरा कराते हैं। इन तीन वर्षों में उन छात्रों के मानसिक स्थिति के बारे में सोचा आपने? एक क्लर्क बनने के लिए तीन चरणों की परीक्षा में दो- दो बार इंटरव्यू देकर कोई छात्र तीन वर्ष बाद पोस्टेड होता है तो वह बहुत कुछ देख चुका होता है इन तीन वर्षों में।उन तीन वर्षो के मानसिक कष्ट का रत्ती भर अन्दाजा कुर्सी पर बैठे न तबके भईया को हुआ ना अबके बाबा जी को। जहां PCS की परीक्षा में evening शिफ्ट का पेपर मॉर्निंग शिफ्ट में बाँट दिया जाता है वहां क्या ही भरोसा किया जाए।
4-5 वर्षों में प्री, मैन्स, इंटरव्यू, हाई कोर्ट , सुप्रीम कोर्ट , डबल बेंच ,ट्रिपल बेंच आदि जैसे कई प्रक्रियाओं के बाद यदि आपके अन्दर धैर्य बचा है और देश के लिए कुछ करने की सोच अब भी बची हुई है तो फिर आईये आयोग का द्वार आपके लिये ही है। इन 4-5 वर्षों में आप शायद एक अधिकारी तो बन जाएं पर क्या आप ज़िंदगी में बहुत कुछ खो नहीं चुके होंगे दोस्तों के साथ बिताने वाले समय, परिवार के साथ कुछ पल, अपने खास भाइयों- बहनों- दोस्तों की शादी और भी क्या- क्या...

जो भी हो आयोग बदले ना बदले हमें हौंसला रखना होगा एक सुनहरे कल के लिए, खुद को साबित करने के लिए और अपने सपनों के लिए जिसे शायद आपने अकेले या किसी के साथ देखा हो।
अंत में यही कहुंगा..

शब आई है तो आएगी निश्चित ही सहर भी
ये बात सच नहीं है कि झिलमिल न मिलेगा।

"दीपक" कि हौंसले को डिगा दे कोई तूफ़ां
तूफ़ान कोई इतना तो काबिल न मिलेगा।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

गुरुवार, 11 अप्रैल 2019

मेरी दुनिया में आकर फिर दुनिया से जाता ताजमहल

मैंने देखा एक ताजमहल
हंसता- मुस्काता ताजमहल
बाहों में आता ताजमहल
जुल्फें बिखराता ताजमहल।

एक पल में दुनिया में आकर
दुनिया बन जाता ताजमहल
तुमने देखा चुप ताजमहल
हमने बतियाता ताजमहल।

जग से बिलकुल ही जुदा- जुदा
खुद पर इतराता ताजमहल
मेरे हाथों पर उंगली से
एक चित्र बनाता ताजमहल।

मेरी दुनिया में संग मेरे
मुझमे खो जाता ताजमहल
अपने सपनों की एक फसल
मुझमे बो जाता ताजमहल।

देखा मैंने मुझपर अपना
अधिकार जताता ताजमहल
बस एक हँसी में ले जाता
हर दर्द चुराता ताजमहल।

तुमने पत्त्थर वाला देखा
मैंने मिट्टी का ताजमहल
कंधे पर मेरे सर रखकर
आंसू बरसाता ताजमहल।

देखा मैंने चलकर आते
फिर देखा जाता ताजमहल
एक दिन मेरी एक गलती पर
मुझसे गुस्साता ताजमहल।
I
पहले बतियाते देखा था
फिर चुप हो जाता ताजमहल
मेरी दुनिया में आकर फिर
दुनिया से जाता ताजमहल।

पहले था साथ हक़ीकत में
अब ख्वाब में आता ताजमहल
होठों पर कुसुम खिलाकर फिर
आंसू दे जाता ताजमहल ।

पहले चलता था साथ मगर
अब राह दिखाता ताजमहल
आने जाने वाली दुनिया
मुझको दिखलाता ताजमहल।

अब भी ऐसा लगता है कि""
मुझको अपनाता ताजमहल
आकर कहता एक बार पुनः
कानो में "दीपक" ताजमहल।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2019

कुबेर कविताई केहू ना भुलाई..

धोती- कुर्ता , गान्धी टोपी आ झोरा आ छाता लेहले एगो आदमी जब गाँव में चले त कबो ना बुझाव की भोजपुरी भाषा के हास्य - व्यंग के एगो अद्भुत हीरा हेतना अति साधारण होई।
२५ फरवरी के श्री कुबेरनाथ मिश्र " विचित्र" जी ए दुनिया के छोड़ के इश्वर की लगे चल गईनी। हो सकेला ईश्वर के मन होखे हास्य सुने के।
कुबेर बाबा से जुड़ल बहुत याद बा हमरी लगे। 2015 में एगो कवि सम्मेलन रहे बसंत पंचमी के दिने हमरो कविता पढ़े के रहे, कुबेर बाबा अध्यक्ष रहने जब हमरा पढ़े के भईल कविता ता कहने की जा जमा द एकदम हमनी के त पुरा गाँव कवि हs। हम कविता पढ़नी आ कुबेर बाबा 50 रुपया देहने हमके कविता के बाद आ खूब बड़ाई कईने।
जब भी रास्ता में मिल जास आ कहीं की अगो कविता सुनावs ना बाबा त कबो माना ना करस।
कुबेर बाबा की कविता में हास्य आ व्यंग दुनु मिली। बलिया के बब्बर, दुपहरिया, तिजहरिया डिबलर ( नाटक), अब मेहररुए राज चलइहे, रैनाथ पचासा, सत्यनारायण व्रत कथा के भोजपुरी काव्यानुवाद आदि कई गो किताब प्रकाशित बा।
जब उत्तर प्रदेश में मायावती के सरकार रहे, केन्द्र में अटल जी के आ कलाम जी राष्ट्रपति रहनी तब कुबेर बाबा लिखले रहनी

आबादी कम करे में सबसे आगे देश हमार बा
पी एम से सी एम ले देखी राष्ट्रोपति कुंवार बा।



कुबेर बाबा के कविता सुन के लोग के पेट दुखाए लागो हंसत -2। उनके आखिरी किताब "काशी में तीन -पांच" पिछला साल आईल रहे। हम वॉलीबाल खेल के आवत रहनी त रास्ता में कुबेर बाबा मिल गईने आ झोरा में से किताब निकाल के देहने की लs हइ नयका किताब ह तहरा के नइखी  देले ले ल ना तs ख़तम हो जाइ।
जब कुबेर बाबा के पत्नी के स्वर्गवास भईल रहे त एगो कविता लिखले रहने ओमे तबियत खराब से ले के क्रिया कर्म तक के एक एक दिन के बड़ा जबर्दस्त तरीका से लिखले बाने।देखी एगो मुक्तक..


रउआँ अइतीं त अँगना अँजोर हो जाइत।
हमार मन बाटे साँवर ऊ गोर हो जाइत

जवन छवले अन्हरिया के रतिया बाटे।
तवन रउरी मुसुकइला से, भोर हो जाइत।।

अंत में इहे कहब की भोजपुरी साहित्य में जवना स्थान खाली भईल बा एके भरल बहुत मुश्किल बा।
कुबेर बाबा हमेशा याद रहिहे अपनी कविता के चलते उनही के लिखल ह

कुबेर कबिताई केहु ना भुलाई 
जे भुलाई ओकर कान अईंठाइ।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

ख्वाब आँखों में बस गया होगा

ख्वाब आँखों में बस गया होगा
सारी दुनिया बिखर गयी होगी.

वो जो तितली थी इस बगीचे में
उड़ के जाने किधर गयी होगी।

हर घडी फ़ोन में लगा रहता
ये मोहब्ब्त नयी नयी होगी।

खुद को मुझसे अलग किया होगा
फिर वो ज्यादा निखर गयी होगी।

वो जो रखतीं थी बाँध कर जुल्फें
अब भी वैसे ही रख रही होगी?

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

सोमवार, 14 जनवरी 2019

मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम

मैं हूँ अब भी खड़ा उसी रस्ते
जिससे होकर कभी गए थे तुम।

यार छोडो भी वस्ल की बातें
उस समय तो नए नए थे तुम।

एक झटके में रूबरू हो कर
एक झटके में हट गए थे तुम।

मेरी ग़ज़लों में साथ हो मेरे
मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम।

मैं भी खामोशियों में रहता हूँ
जबसे खामोश हो गए थे तुम।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

लप्रेक: प्रेम में दुनिया

याद है जब अचानक चलते समय तुमने उस जोड़े की तरफ इशारा करते हुए मुझसे कहा था, ये दुनिया प्रेम में ही खूबसूरत लगती है" और मैंने पूछा था  ऐसा क्या है प्रेम में जो दुनिया इतनी खूबसूरत लगने लगती है ? इसके जवाब में तुमने मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा था प्रेम खूबसूरत होता है क्योंकि प्रेम में इंसान सिर्फ खूबसूरती देख पाता है जैसे कि इस तस्वीर में तुम देख रहे हो। इस बातचीत में हम भूल गए की ये आखिरी मुलाक़ात थी।
प्रेम के छाँव से निकल कर अपने अपने रास्तों की धूप से अब दोनों को रूबरू  होना था।

Lokendra Mishra
#लप्रेक

रविवार, 13 जनवरी 2019

मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम

मैं हूँ अब भी खड़ा उसी रस्ते
जिससे होकर कभी गए थे तुम।

यार छोडो भी वस्ल की बातें
उस समय तो नए नए थे तुम।

एक झटके में रूबरू हो कर
एक झटके में हट गए थे तुम।

मेरी ग़ज़लों में साथ हो मेरे
मेरी ग़ज़लों से कब गए थे तुम।

मैं भी खामोशियों में रहता हूँ
जबसे खामोश हो गए थे तुम।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शनिवार, 5 जनवरी 2019

यही मोहब्बत के मायने हैं...

हज़ारों गम हैं हमारे अन्दर बस एक ख़ुशी का पता नहीं है
वो कह रहा है मुझे पता है मगर उसे कुछ पता नहीं है।

हज़ारों लोगों की चीखे हैं और न जाने कितना है शोर अब भी
मगर जिसे सुनना चाहे ये दिल है सब मगर वो सदा नहीं है।

मैं तुमसे बातें भी अब न करता इसे गलत मत समझना जाना
हज़ारों बाते हैं पास मेरे मगर कहूं क्या पता नहीं है।

यही मोहब्बत के मायने हैं, ख़याल उसका ख़ुशी भी उसकी
तमाम हिस्सों में बंट चुका हूँ पर इसमें उसकी खता नहीं है।

न जाने कितना सहा है तुमने न जाने क्या दुनिया देख ली है
जो कुछ भी पूछो तो बोलती हो मुझे ये सब कुछ पता नहीं है।

मुझे वो मैसेज नहीं है मिलता "कहाँ बिजी हो" "क्या कर रहे हो"
मुझे पता है  जो कर  रही  हो ये तो  तुम्हारी अदा नहीं है।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"