शहीद सैनिक और उसकी पत्नी के बीच अगर आखिरी बार बात होती तो शायद यही होती
वीर सैनिक की पत्नी:
सुबह फोन पर यही कहा था जल्दी घर को आऊंगा
और तुम्हारी खातिर बेटे नये खिलौने लाऊंगा।
ऐ जी तुमको देखे जाने कितने ही दिन बीत गये
जीवन में विष ही विष है, लगता अमृत घट रीत गये।
तुमने यही कहा था बहना की शादी में आओगे
बबुआ की खातिर कपड़े और मेरी साड़ी लाओगे।
फिर क्यों अपना वादा आज निभाना भूल गये हो जी
हमे छोड़ कर आखिर हमसे क्योंकर दूर गये हो जी
पत्नी को लगता है जैसे सैनिक बोल रहा है....
तुमसे दूर कहाँ जाऊँगा सात जन्म का बन्धन है
प्यार हमारा और तुम्हारा पावन है ज्यों चन्दन है।
लेकिन सब धर्मों से ऊपर राष्ट्र धरम वो मेरा था
जब दुश्मन ने भारत माता की माटी को घेरा था।
माता पर जो आँख उठे वो आँख फोड़ना होता है
हाथ उठाता है जो उसका हाथ तोडना होता है।
हम सब तो तैयार खड़े थे पिस्टल थामे बाँहों में
मगर कहीं आदेश पड़ा था राजभवन की राहों में।
कभी पीठ पर गोली हमने खाई थी ना खाई है
हर जवान की मौत की खातिर दिल्ली उत्तरदायी है।
भारत माँ के आँचल पर जो हाथ लगाने आयेगा
सबसे पहला वार हमारे सीने से टकरायेगा।
प्रियतम विदा करो अब मुझसे अधिक न बोला जाता है
हंसते हंसते ही जग से वीरों का टोला जाता है।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
9169041691