रविवार, 28 फ़रवरी 2016

वो मुझको बुलाती है

मुझे ऐसा क्यों लगता है कि वो मुझको बुलाती है
वो जब भी सज संवर जाये बला की जुल्म ढाती है।

वो मुझसे दूर है लेकिन यूँ लगता पास है मेरे
लगे उसकी छुअन ही है हवा जब छू के जाती है

यूँ लगता है कि दिन में ही हुई है रात मावस की
वो लड़की जुल्फ को अपने हवा में जब उड़ाती है।

बिछुड़ने का उसे भी गम है ये मालूम  होता है
वो जब भी मुझसे मिलती है नजर अपनी चुराती है।

मेरे हर गीत ग़ज़लों पर है हक़ उसका सुनो "दीपक"
मेरी ग़ज़लें अमर होती है जब वो इनको गाती है।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
लख़नऊ
©® lokendradeepak.blogspot.com

सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

आरक्षण

हम अल्पसंख्यक हैं,पिछड़े हैं, गरीब हैं ,लाचार हैं।
हम सड़क जाम कर सकते हैं। ट्रेन रोक सकते हैं। बस फूँक सकते हैं। सेना और पुलिस से संघर्ष कर सकते हैं। स्कूल कॉलेज दफ्तर, सरकारी गैर सरकारी दफ्तर बन्द करा सकते हैं, और तो और हम सरकार को चुनौती दे सकते हैं।
पर अपने दम पर सरकारी नौकरी नहीं ले सकते। बिना आरक्षण के देश के सर्वोच्च संस्थानों जैसे आई आई टी , एम्स , और गवर्नमेंट कॉलेज में एडमिसन नहीं ले सकते।
हमे विकसित भारत में रहना है, लेकिन मेहनत नही करना।

#जाट रिजर्वेशन
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
©lokendradeepak.blogspot.com

रविवार, 21 फ़रवरी 2016

जय भोजपुरी

हर सरकार कुछ अच्छा काम करेले आ कुछ गलतियो करेले । वर्तमान सरकार भी भुत कुछ कईलस जईसे स्वच्छ भारत अभियान, डिजिटल इण्डिया , विदेश से निवेश मिलल बाकी कुछ मामला में सरकार फेल भईल।

भोजपुरी के ओकर सम्मान ना मिलल अभी ले जबकि ई सरकार के वादा रहे। आज मातृभाषा दिवस पर हम सरकार के आ सब लोग के भोजपुरी के  उचित सम्मान देवे के अनुरोध कर तानी।

मोदी जी अब त ना सहले सहाई
जो अच्छा दिन आई त कब तक ले आई

जहां देखी उंहवे मचल मारा मारी
भईल बाघ गीदड़ में अब पकिया यारी
जँहा देखी उंहवे बा चोरी चमारी
ना रउआ सम्हारब त के ई सम्हारी

मोदी जी अब त ना ...........

डॉलर के आगे रोव तावे रुपया
दिने दिन देखी गिर तावे रुपया
गरीबन के हाथ से फिसलता रुपया
अमीरन से जा जा के चिपकता रुपया।

मोदी जी अब त ना .............

कालाधन रउआ त अवते मंगवनी
पनरह लाख खाता में तुरते पठवनी
भोजपुरियन के खूबे रउआ ठगनी
अनुसूची में भोजपुरी के रखनी

मोदी जी अब त ना ...........

कर तानी भारत के डिजिटल बा अच्छा
बढ़ता निवेश अउरी कैपिटल बा अच्छा
बनाई नया हॉस्पिटल बा अच्छा
किसानन के बाकि ना झीटल बा अच्छा

मोदी जी अब त ना .......

बीया खाद के बाटे कालाबाजारी
किसानन के हक़ बा तवन मत मारी
कही निति उल्टा न पड़ जाए सारी
मोदी जी हालत बा बदतर सम्हारी

मोदी जी अब त ना .....

खा खा के बसिया जीय ताटे केहू
फाटल लुगरिया सीयs   ताटे केहू
नाला के पानी पीयs ताटे केहू
बिना घर दुआरे रहs ताटे केहू

मोदी जी अब त ना ......

नेतन के काला कमाई के रोकीं
मार्केट में फ़र्ज़ी दवाई के रोकीं
होता हंसाई हंसाई के रोकीं
संसद में होता लड़ाई के रोकी

मोदी जी अब त ना ...........

आशा बा रउआ त अब ध्यान देहब
भोजपुरी के ओकर सम्मान देहब
भारत के फेर ओकर पहिचान देहब
बेरोजगारी के भत्ता ना चाही इ वादा करी रउआ अब काम देहब

अगर देर करब त अब ना सहाई
मोदी जी अच्छा दिन कब तक ले आई

©®लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
09169041691

शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

गीतिका

आपस में एक दूजे से लड़ते कभी नही
नेता हमारे पीछे जो पड़ते कभी नहीं

दुनिया हमेशा उसके ही कदमो को चूमती
तिल भर भी जो सच्चाई से टलते कभी नहीं।

अपने परो पे चिड़िया का विश्वास देखिये
कारण यही है शाख से गिरते कभी नही।

औरो के रास्ते में जो कांटे है बो रहा
राहों में उसके फूल तो मिलते कभी नहीं

कुछ बात तो होगा ही जल रहे  चराग में
"दीपक"यूँ आँधियों में तो जलते कभी नहीं।

©®लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
लख़नऊ

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

पापा

पापा को समर्पित  एक रचना

बचपन में जब जाते हैं तो आती है याद जमाने की
जिद करते थे पापा से जब कंधे पर हमें घुमाने की

बिन गुस्साये बिन देर किये कन्धे पर हमें बिठाते थे
हर गली बगीचे तक हमको घण्टों बिन थके घुमाते थे

ज्यों होता फल नारियल का
बाहर  से वज्र सामान मगर
लेकिन  शीतल जल से होता
है भरा हुआ भीतर

वैसे ही पूज्य पिताजी भी होते बाहर से कड़ा मगर
जलधार स्नेह का बहता है सर्वदा हृदय भीतर

बचपन के सभी तमन्नाओं को पूरा करते हैं पापा
अनुशासन देने खातिर घूरा भी करते है पापा

माँ अगर प्रेम की मूर्ति है तो करुणा के आगार पिता
माँ अगर दया की दात्री हैं तो देते सदा विचार पिता

हैं पिता वृक्ष वह बरगद का जिनकी छाया में बड़े हुए
हैं पिता सहारा जीवन का जिनके कारण हम खड़े हुए

घनघोर विपति को सह के भी आगे ही सदा बढ़ाया है
ऊँगली को थाम पिताजी ने चलना हमको सिखलाया है

हम कैसे भूल सकेंगे की अपना सारा सुख त्यागा है
बेटों की ख़ुशी  तरक्की को ही केवल रब से माँगा है

सच में वह पुत्र अभागा है जो रखे पिता का मान नही
वह पुत्र न हो तो अच्छा है जिसको पितु पर अभिमान नहीं

हम सबके के जीवन का सुनलो आधार पिताजी है
जीवन जिस पर है टिका हुआ वह अमर विचार पिताजी हैं

पृथ्वी पर हैं भगवान् अगर तो माँ पापा ही हैं जानों
यह बात लिखी है ग्रंथों में इसको तुम सदा सत्य जानों

जीवन में शान्ति और सुख है तो है इनके ही चरणों में
राम -कृष्ण तक ने जीवन है जिया इन्ही के शरणों में

सुख और शांति के दीपक को घर में यदि हमें जलाना है
तो माता और पिताजी को जीवन में नही भुलाना है

जिस माता और पिता ने है मुझको लिखा निज हाथो से
उनका वर्णन कब हो सकता इन छोटी छोटी बातों से

अंततः विराम कलम को है यह छंद समर्पित चरणों में
दीपक करता सौ बार नमन हे पिता तुम्हारे चरणों में

©®लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
09169041691

ग़ज़ल

मेरे दिल को दुःखा गया कोई।
सारे रिश्ते भुला गया कोई

हर कदम साथ साथ चलता था
ख्वाब आ कर जला गया कोई।

दिल तो है दिल ये ना समझ पाया
इसको पागल बना गया कोई

गीत तुम प्यार के लिखते जाना
आके मुझको बता गया कोई

मत रहो तुम गमों के शाये में
आ के "दीपक" जला गया कोई।

©® लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
लखनऊ

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

गीत

निष्पक्ष नियंत्रित निर्विकार नूतन समाज का गायक हूँ
कवि दिनकर पंत निराला थे मैं तो बस उनका पायक हूँ

निर्भय होकर लिखूंगा मैं जो कुछ भी खोट तुम्हारी है
लिखता हूँ मैं जिस पीड़ा में उसकी हर चोट तुम्हारी है
कुछ कहते हैं मैं दिशाहीन हो चुके  धनुष का शायक हूँ
निष्पक्ष नियंत्रित ......................

हो सकता है मेरी बातें झूठी हो और ख़याली हो
मेरे लिखे हर शब्द तुम्हे लगते यदि बहुत बवाली हों
हो सकता है सत्य तुम्हे यूँ लगता हो गाली हो
हो सकता है की फरेब के बगिया के तुम माली हो
लेकिन मैं अदना सा कवि
कब कहता हूँ जननायक हूँ

निष्पक्ष नियंत्रित निर्विकार नूतन समाज का गायक हूँ
कवि दिनकर पंत निराला थे मैं तो बस उनका पायक हूँ।

©®लोकेन्द्र मणि  मिश्र "दीपक"
9169041691

गज़ल

सज संवर कर पास आई है ग़ज़ल
दिल को मेरे आज भायी है गज़ल

थोड़े  शब्दों में  बड़ी  बातें कहे
कौन कहता है की राई है गजल

दिलजलों के दिल के सबसे पास है
कौन कहता है पराई है ग़जल

जा रहा हूँ आज उसके पास मैं
आज उसने फिर से गायी है गजल

तुम करो स्वीकार या फिर ना करो
दिल से "दीपक "नें बनाई है गज़ल

©®लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
लखनऊ