शनिवार, 3 दिसंबर 2016

राजेन्द्र बाबू

भारतीय राजनीति में कई बार कुछ अइसन घटना आ अईसन लोग आइल बा जवन की पूरा राजनीति बदल के रख देले बा। राजेन्द्र बाबू भी एगो ओइसने महापुरुष रहनी। महात्मा गांधी जी एक बार कहले रहनी की ""अमृत पीये वाला त बहुत लोग बा हमरी साथे बाकी जहर पीये वाला बस एगो राजेन्द्र बाबू बाने""। खुद जहर पीके आ जगत के अमृत दान में देवे वाला नीलकण्ठ भारतीय राजनीति में राजेन्द्र बाबू ही रहने। आज 3 दिसम्बर के उँहा के जन्म भईल जीरादेई में। पिछला सात साल से आखर परिवार 3 दिसम्बर के भोजपुरिया स्वाभिमान सम्मेलन के आयोजन कर रहल बा पंजवार में। राजेन्द्र प्रसाद जी के श्रद्धांजलि। राउर हर बात एह देश के आ दुनिया के प्रेरणा देत रही। आजकल कुछ विद्वान लोग ई कह रहल बा की अगर भोजपुरी के मान्यता मिली त हिंदी कमजोर हो जाई , एह समय में राजेन्द्र बाबू रउआ बहुत इयाद आवतानी काश की रउआ रहितीं त एह विद्वान लोगन के एगो करारा जबाब मिलित। ओह समय जवन आदमी देश के रिप्रेजेंट करs ता ऊ आदमी भी भोजपुरी में बोले आ अपना घरे जवन पत्र भेजे उहो भोजपुरी में रहे । कुल मिला के एह विद्वान लोगन की बारे में कुछउ कहला से अच्छा रही की हमनी के राजेन्द्र बाबू के देखावल रास्ता पर चली जां उँहा के आदर्श के अपनाई जां।
अंत में राजेन्द्र बाबू की सम्मान में इहे कहब..

राजनीति के, त्याग के,मानवता के केंद्र
धरती पर बस एक बार आवेलें राजेन्द्र।
जय भोजपुरी

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

ये युग मशीनों का है!

मशीनों ने इंसान को भी मशीन बना दिया है
कुछ लोग कहते मशीनों ने ज़िन्दगी को हसीन बना दिया है
मशीन दोस्त हैं हमारे भूलकर भी मत सोचना
जरा सी चूक   हो  जाए फिर देखना ।
सारी इंजीनियरिंग धरी रह जाती है
और मशीन की थ्योरी किताबों में पड़ी रह जाती है।
मैं मशीनों का विरोधी नहीं हूँ और कहना यही चाहता हूँ
कि मैं मशीन बनकर जीना नहीं चाहता हूँ।
मशीन हमे चाँद पर ले जा सकते हैं
हमें मंगल पर पानी दिला सकते हैं।
मगर मेरे दोस्त, मशीन बिल्कुल बेशऊर हैं
वे हमारी भावनाओं से बहुत दूर हैं।
हम मशीनों को उँगलियों पर नचाते हैं
जब चाहे जो चाहे कर के दिखाते  हैं।
ये युग मशीनों का है, हमे मानना होगा
पर मशीनों से पहले खुद को जानना होगा।
~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

रविवार, 13 नवंबर 2016

लाल सलाम

लाल सलाम कामरेड कैसे हो? भक् काहे का लाल सलाम धूप में खड़े खड़े करिया हुए जा रहे हैं हम और तुम हो की.......| काहे भड़कते हो यार क्या हुआ बताओ तो सही।देख नही रहे हो सबेरे से लाइन में लगे हैं रुपया एक्सचेंज कराने के लिये शाम होने को आ गयी और सर्वर डाउन है , आखिर इतना कष्ट क्यों झेले हम । देश गर्त में जा रहा है । गरीब भुखों मर रहा है हमारे पास और भी बहुत काम हैं करने को । ये जो बेरोजगार और अनपढ़ हैं यही सब लाइन में खड़े हैं हम तो एक एजेंट से बात किये हैं 500 का 450 दे रहा है अब उसी से लेंगे। लाल सलाम !
ये वही कामरेड हैं जो दो हफ्ते पहले तक भारत - पाकिस्तान का युद्ध चाहते थे। आज लाइन में भी खड़े नहीं हो रहे और कल ईंट का जबाब पत्थर से देने के लिए सरकार को कोश रहे थे । हाँ भाई सर्जिकल स्ट्राइक का सबूत भी मांग रहे थे। सिर्फ इसलिये की सीमा पर खुद लड़ने थोड़े जाना था । जिसको मरना है मरे ...काश कोई इस कामरेड के गालों पर एक लाल सलाम जड़ देता।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

इंद्र - नारद संवाद (समाजवादी रथ यात्रा)

देवर्षि नारद के स्वर्ग में पहुँचते ही इंद्र ने पूछा : देवर्षि पृथ्वीलोक के क्या समाचार हैं? देवर्षि ने कहा हे प्रभु आज मैं आपको उत्तर प्रदेश की कथा सुनाता  हूँ जिसे ब्रिटिश काल में यूनाइटेड प्रोविन्स कहा जाता था। यह प्रदेश आजकल समाजवाद का गढ़ बना हुआ है। ये वही समाजवाद है जहाँ पुत्र कहता है की मेरे पिताजी ने मुझे  मुख्यमंत्री बनाया तो मेरा यह फ़र्ज़ बनता है की मैं उन्हें प्रधानमन्त्री बनाऊँ। हे प्रभु इस समाजवाद के प्रमुख स्तम्भ एक नेताजी हैं जिन्होंने " बच्चे हैं गलतियां हो जाती  हैं" सिद्धांत का प्रतिपादन किया। हे देवर्षि यह रथ प्रकरण क्या है? आजकल बहुत जोर शोर से रथ प्रकरण की बाते चल रही हैं, जरा इसके बारे में भी कुछ बताईये ये कहते हुए इंद्र समाजवादी मैनिफेस्टो देखने लगे।  नारद ने कहा प्रभु समाजवाद के जानकारों का  कहना है की रथ न हो तो समाजवाद  फ़ैल ही नहीं सकता वो अलग बात है की इस बार रथ ही फ़ैल गया। हे प्रभो पाँच करोड़ रूपये से एक अत्यंत ही सुंदर समाजवादी रथ का निर्माण हुआ था जो वर्तमान वाहन विज्ञान और तकनीक का अद्भुत नमूना था जो बाद में एक "नमूना" बनकर ही रह गया। कुछ दूर चलने पर  समाजवाद का रथ धुंआ छोड़ने लगा। और तभी  रथी ने रथ को छोड़ कर एक अन्य चारपहिया वाहन से अपनी रथ यात्रा को वाहन यात्रा में परिवर्तित कर दिया। इसी रथ यात्रा के दौरान राजधानी के जनजीवन में ठहराव आ गया।
इस दौरान कई रोगियों को भी समाजवाद का अद्भुत रूप देखने को मिला। हे प्रभो पूरी रथयात्रा के बाद मुझे अदम गोंडवी का एक शेर याद आ गया
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में।

इतना सुनते ही देवराज ने जबरा फैन गाना बजाने का आदेश दिया और जय समाजवाद के नारे लगाने लगे।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

बुधवार, 26 अक्तूबर 2016

इंजीनियरिंग पार्ट 5

सेसनल्स ,दीवाली और ये तबीयत

सुबह से ही सिर में दर्द है, जुकाम हुआ है। कुछ करने का मन नही है मगर पढ़ना तो पड़ेगा ही कल एच एम टी का और मैन्युफैक्चरिंग साइन्स का पेपर जो है। इंजीनियरिंग कॉलेज का अपना अलग फंडा है एक एग्जाम छुट्टी से पहले तो एक छुट्टी के बाद डाल देते हैं, ताकि बच्चा चैन से दीवाली भी नहीं मना सके। दीवाली है तो घर तो जाना ही है और एग्जाम है तो पढ़ना भी है। ये त्यौहारों के समय हमारा जीवन पेण्डुलम के जैसा हो जाता है एग्जाम और दीवाली एक्सट्रीम पॉइंट्स होते हैं और इन दोनों बीच में हम  टू एंड फ्रो करते रहते हैं। सामने HMT की कॉपी रखी है नजर पड़ती है पाँच - पाँच पन्ने की डेरिवशन्स पर दर्द बढ़ता है कॉम्बिफ्लाम की जरूरत महसूस होती है। दिमाग में घूम रहा है नॉन यूनिफॉर्म हीट जनरेशन equation। ये सेसनल  कॉलेज मैनेजमेंट कीतरफ से दीवाली का पटाखा है, जो फूट रहा है हमारे सर पर
ये इंजीनियरिंग नहीं आसान
इक आग का दरिया है और कूद के जाना है।  नहीं नहीं
ये इंजीनियरिंग नहीं आसान
इक आग का दरिया है और उसी में रहना है।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

सर्जिकल स्ट्राईक


महाभारत का युद्ध चल रहा था।कौरव पाण्डवों पर भारी पड़ रहे थे। दानवीर कर्ण के बाणों के आगे पूरी पाँडव सेना
तितर बितर हो कर भाग रही थी। उस दिन के युद्ध समाप्त होने पर मनमोहन सिंह ने कहा की हमे घटोत्कच को बुलाकर सर्जिकल स्ट्राइक करवाना चाहिए,इससे मजबूर होकर कर्ण ने जो दिव्य अस्त्र अर्जुन के लिए बचाकर रखा था वो उसे चलाना पड़ेगा। उसी रात मनमोहन सिंह के निर्देशन में घटोत्कच ने एक बेहद सफल सर्जिकल स्ट्राइक किया और कर्ण का दिव्य शस्त्र घटोत्कच के ऊपर चल गया ।इस प्रकार अर्जुन की जान कांग्रेस के सहयोग से बच गयी। तत्कालीन सेनाध्यक्ष पप्पू जी स्वयं उस सर्जिकल स्ट्राइक का नेतृत्व कर रहे थे । इस सफल सर्जिकल स्ट्राइक के लिए मैं बधाई देता हूँ । इंतजार कीजिये कुछ ही दिनों में कई अन्य महाभारतकाल और रामायणकाल के सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में हम सूचित करेंगे और कृपया कर सबूत मत मांगियेगा। सबूत मांगने का काम आचार्यधीश(दिल्लीवाले) के पास सुरक्षित है ।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

रविवार, 2 अक्तूबर 2016

लालबहादुर शास्त्री

आज बताएब हम की कइसन रहलें लालबहादुर
आजादी की खातिर सुनि लs रहलें बहुते आतुर
अईसन रहलें लाल बहादुर

पाक  के सबक सिखवलें
सब किसानन के जगवलें
दिहलें दुश्मन के भगाई
सहलें तनिको ना बरिआई
कइलें भारत के ऊँचा खूब भाल ए बाबू
अईसन गुदड़ी के रहलें ऊ त लाल ए बाबू

छोटहन भले देहिं के रहलें
बाकी कुछुओ गलत ना सहलें
ऊँचा सदा शान के रखलें
देश के एक बान्हि के रखलें
सत्य अहिंसा के बनाके रखलें ढाल ए बाबू
अईसन गुदड़ी के रहलें ऊ त लाल ए बाबू

दुश्मन खातिर ऊ त रहलें एगो काल ए बाबू
अईसन गुदड़ी के रहलें ऊ त लाल ए बाबू।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

नोकिया 2690 (कहानी)

सन् 2009 की बात है । मोबाईल फोन तो तब भी थे पर   तब स्मार्टफोन्स कम थे शायद ही कोई गाँव जवार में हो जिसके पास हो। तब जमाना था नोकिया -1100 नोकिया 1600 और 2690 जैसे फोन का, हाँ चाइना के कुछ फोन भी थे जिनका गाना डेढ़ - दो किलोमीटर तक तो सुनाई देता देता था। मुझे याद है मेरा पहला फोन था AGTEL ..हाँ भाई चाईना ही था। लेकिन ये भी 2011 के मार्च महीने में मिला था शायद 20 तारीख थी एक या दो परीक्षा बचे थे अभी दसवीं के। खैर मोबाइल के बारे में जो भी कहे कम ही है। उस समय हम कक्षा 9 में पढते थे ,एक मित्र थे  भगवान की कृपा से अब भी हैं। उनके पास 2690 सेट था। इस मोबाइल ने कई प्रेम - सम्बन्धो को आधार प्रदान किया था । कितने बजे उनके उनको उनसे मिलना है ये इस मोबाइल और उनके घर के इकलौते मोबाईल  के सम्पर्क पर निर्भर करता था। कुछ रिश्ते तो आज भी उस 2690 की दुआ से एक हैं। लेकिन जो 2690 के मालिक थे उनका कुछ भला नही हुआ इससे शिवाय इस संतोष के की मैंने फलाँ को फलानी से मिला दिया। एक बार ये अति उत्साह में आकर एक नम्बर पर मैसेज कर दिये " हैप्पी बर्थडे डिअर" लेकिन ये नम्बर डिअर का नही डिअर के बाप का था ।अब संयोग कहिये या इनके अच्छे कर्मो का प्रतिफल मैसेज डिअर ने ही देखा। बस अगले दिन साहब की क्लास ली गयी तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई फोन मैसेज करने की आज के बाद फोन करोगे न तो ........ अंग्रेजी हिंदी और भोजपुरी मिश्रित कुछ गालियों का इन्होंने रसास्वादन किया । लेकिन जनाब सकारात्मक सोच के व्यक्ति थे ..... माफ़ कीजियेगा "हैं" उन्होंने सोचा कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही बस लगे रहे दिन रात उसी काम में, लेकिन अफ़सोस साहब के उसी फोन से बरसो उसी लड़की से  कोई और लड़का बात करने लगा और साहब अपने आपको मन लिए। फिर दिल में वही संतोष दो प्यार करने वालो को मिला दिया। मित्र के पास आज सैमसंग जे -7 है लेकिन वो कहते हैं की भाई इसमें 2690 वाला मजा नही है। सब है मगर अब भी उन्हें इंतजार है एक अदद मैसेज की ।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

गुरुवार, 29 सितंबर 2016

सर्जिकल स्ट्राइक


ये सिंहो वाला तेवर है झुकता है नहीं झुकाने से
कोई कितना भी दादा हो ये डरता नहीं जमाने से।

हो बात राष्ट्र के रक्षा की सर्वस्व समर्पण करता है
मौका पड़ता है तो तन-मन- धन सबकुछ अर्पण करता है।

हम शांति चाहने वाले हैं हम भले बुद्ध पर मरते हैं
इसका यह कतई अर्थ नहीं हम किसी युद्ध से डरते हैं।

तुम अगर प्यार से मानो तो फिर प्यार दिखाना आता है
अन्यथा हमें तुमसे अच्छा तलवार चलाना आता है।

छुपकर के वार किया तुमने उसका फल तुम्हे दिखाया है
घर में घुसकर इन सिंहो ने तुम सब को मार गिराया है।

ये खेल हमारा था केवल तुमको इतना बतलाना था
है बाकी पूरी फ़िल्म अभी ट्रेलर बस तुम्हे दिखाना था।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

रविवार, 25 सितंबर 2016

जिंदगी प्राणवान हो जाये...

खूबसूरत विहान हो जाये
चम्पई आसमान हो जाये।

तुम जो बस एक बार आ जाओ
जिंदगी प्राणवान हो जाए।

पाँव अब तक थे इस धरातल पर
अब चलो इक उड़ान हो जाये ।

झूठ का जीतना नहीं सम्भव
सच भरा यदि बयान हो जाये ।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र '"दीपक"'

सोमवार, 19 सितंबर 2016

कश्मीर हमला

हमले पर हमले होते हैं कश्मीर की वैली में
कुछ भी तल्ख नही दिखता है पी एम जी की शैली में।

राजनाथ जी भी निंदा पर निंदा करते जाते हैं
और हमारे वीर सदा सीमा पर मरते जाते हैं।

रोज रोज ये निंदारस का पाठ पढाना बन्द करो
दुष्ट पाक से मैदां में आ जाओ खुलकर द्वन्द करो।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शनिवार, 17 सितंबर 2016

दुश्मन को भी दोस्त बनाना आता है

दुश्मन को भी दोस्त बनाना आता है
रूठ के देखो मुझे मनाना आता है।

दर्द छुपा जो लाख हमारे सीने में
महफ़िल में लेकिन मुस्काना आता है।

भूखे मर जाते हैं जब फुटपाथों पर
तब जाके सरकारी खाना आता है।

पत्थर भी पिघले हैं, सुर से तानों से
चलो दिखा दो तुमको गाना आता है।

हार नहीं मानूँगा कभी अँधेरे से
"दीपक" हूँ मैं तिमिर मिटाना आता है।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

रविवार, 11 सितंबर 2016

कोई शिकवा नहीं ज़माने से

कोई शिकवा नहीं जमाने से
प्यार बढ़ता है दूर जाने से।

बेवफा है वो, जानता था पर
बाज आया न दिल लगाने से।

रोग है तो दवा जरूरी है
मर्ज़ बढ़ता है और दबाने से।

अपनी परछाइयों से डरता हूँ
डरता हूँ पास उनके जाने से।

हाल इस दौर का कहें क्या अब
चोरियाँ हो रही है थाने से।

होगा मंज़र उजास का हर शूं
एक "दीपक" महज जलाने से।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक

ग़ज़ल

सोमवार, 5 सितंबर 2016

गुरु

है जो ऊँचा आसमां से और गहरा सिंधु से
जो करे निर्माण जग का इक अकेले बिंदु से

तन हिमालय सा , हृदय गंगा की पावन धार है
वो जगत के हर मनुज के ज्ञान का आधार है।

जिसके सम्मुख देवता भी सिर झुकाते आ रहे हैं
और जिसकी दिव्यता से पार भव के जा रहे हैं

जो खड़ा है बन के पत्थर  नींव का ,संसार के
जिसके सम्मुख हर समस्या हाथ जोड़ी हार के।

कर रहा उनको नमन " दीपक" झुकाए माथ को
और विनती है यही हे नाथ गहिए हाथ को।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

रविवार, 28 अगस्त 2016

नाथ दैव कर कौन भरोसा

नाथ दैव कर कौन भरोसा...

आज ही टीवी पर देखा की महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में बाढ़  से जन जीवन बेहाल है। अभी कल की ही बात है बलिया में एक बाँध टूट गया। बाढ़ की विभीषिका के बारे में वही जान सकता है जो भुक्तभोगी हो। पर टीवी पर दिखाए जाने वाले दृश्य निश्चित ही दिल दहला देने वाले हैं। लगभग 10 दिन पहले मैंने पढ़ा था की एक गाँव है परसिया कूर्र्ह  है नहीं था । अभी उसका आखिरी मकान गिरा है 10 दिन पहले। बहुत दुःखद स्थिति है। वहीं एक मेरा क्षेत्र है भाटपार रानी यहां खेतों में धान के सिंचाई के लिए पम्पिंग सेट्स लगाये जा रहे हैं। और श्रमबिंदु तो बिना श्रम किये ही श्रमधार बनकर बह रही है। बिजली की स्थिति तो वही है उत्तर प्रदेश मोड। कभी दक्षिणी फीडर जल रहा है तो कभी उत्तरी फीडर। नहा कर कपड़े क्या पहने फिर नहा लिए। दैव से अब यही विनती है बाढ को शांत करें और थोड़ी बारिश हमारे यहाँ भी करें ताकि धान न सूखे और पम्पिंग सेट चला कर नुकसान की खेती न करनी पड़े । इस मौके और गोस्वामी जी याद आ रहे हैं। नाथ दैव कर कवन भरोसा.......

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

सोमवार, 15 अगस्त 2016

जय हिन्द

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
शहीदों के नाम एक मुक्तक

देश खातिर किया हर जतन आपने
प्राण देकर बचाया वतन आपने
आज आज़ाद हैं हम तो बस इसलिये
देश के हित में ओढ़ा कफ़न आपने।

शहीदों के सपने के भारत यह नही है । आज कश्मीर में हमारे सैनिकों के ऊपर पत्थर फेंके जाते हैं, लाल चौक पर तिरंगा नही फहराया जाता आदि आदि । ये लिस्ट काफी लम्बी है। भारत की बर्बादी के नारे लगाये जाते हैं। जस्टिस गांगुली जैसे बुद्धिजीवियों को अफज़ल की फांसी गलत लगती है। और इन जगहों पर सरकार की उदासीनता भी दिखाई देती है। इसी संदर्भ में कुछ पंक्तियाँ

आजादी का जो सपना था वह पूर्ण अभी तक हुआ नहीं
जो दुष्ट पड़ोसी है उसका मद चूर्ण अभी तक हुआ नहीं।

ऐ नौजवान आगे आओ नौका लहरों के पार करो
अरि मुंडो के जयमाल हेतु तीखी कटार की धार करो ।

पथ भले भरा हो काँटो से पर हार मानना कभी नहीं।
ना कभी मांगने से मिलता अधिकार माँगना कभी नहीं।

जिसको भी विजय मिला जग में है मिला भुजाओं के बल पर
जंग नहीं जीती जाती है कभी सुझावों के बल पर।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

जय हिन्द

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।
शहीदों के नाम एक मुक्तक

देश खातिर किया हर जतन आपने
प्राण देकर बचाया वतन आपने
आज आज़ाद हैं हम तो बस इसलिये
देश के हित में ओढ़ा कफ़न आपने।

शहीदों के सपने के भारत यह नही है । आज कश्मीर में हमारे सैनिकों के ऊपर पत्थर फेंके जाते हैं, लाल चौक पर तिरंगा नही फहराया जाता आदि आदि । ये लिस्ट काफी लम्बी है। भारत की बर्बादी के नारे लगाये जाते हैं। जस्टिस गांगुली जैसे बुद्धिजीवियों को अफज़ल की फांसी गलत लगती है। और इन जगहों पर सरकार की उदासीनता भी दिखाई देती है। इसी संदर्भ में कुछ पंक्तियाँ

आजादी का जो सपना था वह पूर्ण अभी तक हुआ नहीं
जो दुष्ट पड़ोसी है उसका मद चूर्ण अभी तक हुआ नहीं।

ऐ नौजवान आगे आओ नौका लहरों के पार करो
अरि मुंडो के जयमाल हेतु तीखी कटार की धार करो ।

पथ भले भरा हो काँटो से पर हार मानना कभी नहीं।
ना कभी मांगने से मिलता अधिकार माँगना कभी नहीं।

जिसको भी विजय मिला जग में है मिला भुजाओं के बल पर
जंग नहीं जीती जाती है कभी सुझावों के बल पर।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

रविवार, 14 अगस्त 2016

भारत का पाकिस्तान के नाम पत्र

प्रिय पुत्र

यूँ तो प्रिय शब्द कहने का दिल नहीं करता पर क्या करें कुपुत्र की सही पर हो तो मेरे पुत्र ही।सामान्यतः पुत्र के जन्म पर पिता को प्रसन्नता होती है पर तुम्हारा केस ऐसा नही था तुम्हारा जन्म पूरी मानवजाति के लिए एक शर्म की बात थी क्योंकि इधर तुम्हारा जन्म हुआ और इधर न जाने कितनी ही जाने चली गयीं और मानवता की हत्या हुई। कहते है पुत्र कुल का दीपक होता है तुम तो चिता जलाने वाली आग निकले ।नीचता   का रिकॉर्ड बनाना तो कोई तुमसे सीखे। सिर्फ अलग होकर ही तुम नही माने तुमने तो अपने बाप के खिलाफ अपने बाप के घर में ही युद्ध छेड़ दिया। अरे बेटा बाप बाप होता है। ये बात तो जाहिल से जाहिल बच्चे भी जानते हैं कि बाप की संपत्ति जब तक बाप देता नही तब तक कोई भी कानून बेटे को वो संपत्ति नहीं दिला सकता। पर बेटा तुमको कानून की बात कहाँ पल्ले पड़ने वाली तुम तो बम बारूद की बातें करते हो । तुम जितनी बार घर मिलने आये उतनी बार हमने स्वागत किया , कभी आगरा में तो कभी शिमला और कभी दिल्ली में पर तुम तो हो ही हरामी तुम्हें कश्मीर चाहिए । तुम 71 में बम बारूद ले के आये हम तुम्हे लाहौर तक खदेड़ कर आये। यार कमीनेपन की भी हद होती है । भगाने के बाद फिर कारगिल में जूते खाने चले आये। बेटे हम बाप का फ़र्ज़ आज तक निभाते आये पर अब नहीं होता यार। हमारा छोटा बेटा जो 71 में जन्मा उससे भी तुम्हारी नहीं बनती। छोडो हमे अब तुम्हे समझाना नही है । यार 1947 से समझा रहे हैं अब 2016 चल रहा है इतना कोई सहता है क्या ?आखिरी बार कहते है सुन लो बेटा सुधर जाओ नही तो पता ही है तुम्हे  ""बाप बाप होता है""।  अब आज तुम्हारा जन्मदिन है तो गिफ्ट के तौर पर यही नसीहत है ध्यान रखना । नहीं तो बाप बाप होता है......

तुम्हारा बाप
हिंदुस्तान

लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

रविवार, 7 अगस्त 2016

दोस्ती

मित्रता दिवस पर एक और स्वरचित गज़ल

है  इश्क़ है मोहब्बत है प्यार दोस्ती
हो जंग दुश्मनों से तो तलवार दोस्ती

सागर में दुःख के जब कभी फंस जाए जिंदगी
तब डूबती नौका को है पतवार दोस्ती

है मानते होते नही सब दिन हैं एक से
मीठी झड़प है प्यार में तकरार दोस्ती

आए हमारी जिंदगी में इसका शुक्रिया
पतझड़ भरे जीवन में है बहार दोस्ती

जब भी गिरा हूँ मुझको संभाला है तुमने ही
करता हूँ तह -ए -दिल से मैं आभार दोस्ती

©®लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"
09169041691

रविवार, 31 जुलाई 2016

आ जाओ फिर से प्रेमचन्द

मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय कहानीकार व् उपन्यासकार हैं।
आज उनके जन्मदिन पर शत् शत् नमन

आ जाओ फिर से प्रेमचन्द

जिसको हरखू भी प्यारा हो
हामिद आँखों का तारा हो
जो गबन लिखे गोदान लिखे
भारत माता की शान लिखे
जो लिखे दर्द हर बुधिया का
निर्धन की टूटी खटिया का
गिल्ली डंडा का खेल लिखे
पूस की रात की झेल लिखे
हाकिम की कड़वी बात लिखे
हर कुरीतियों को घात लिखे

जो रंगभूमि का मंच लिखे
जो परमेश्वर है पंच  लिखे
जो सूद महाजन का लिख दे
जो कजरी सावन का लिख दे

जो नई दिशा दे जन जन को
शब्दों में ढाले हर मन को
हर मन का जो मनमीत बने
जीवन का मधु संगीत  बने
है पुनः जरूरत प्रेमचन्द
आ जाओ फिर से प्रेमचन्द

©लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

बुधवार, 29 जून 2016

ज़िन्दगी तक आ गए

कल सफर हमने शुरू की आखिरी तक आ गये
दोस्ती से चलते - चलते आशिकी तक आ गये।

अब यहाँ  जज़्बात रौशन हो रहे हैं शब्द से
तीरगी को बेधते हम रौशनी तक आ गये।

अच्छे दिन नेताओ के इससे क्या अच्छे आएंगे?
खद्दरों के  छोड़  कुर्ते रेशमी  तक आ गये।

मौत से लड़ता रहा जो आज वो भी खुश दिखा
क्योंकि आखिर मरते -मरते ज़िन्दगी तक आ गये।

© लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

शनिवार, 4 जून 2016

मथुरा काण्ड

जब शाषन लाचार खड़ा हो दुराग्रही हत्यारों से
सिंहासन का गठबंधन जब होता हो गद्दारों से
जब जब जनता वोट बैंक लड़ाई जाती हो
डी एस पी , एस ओ की जब जब बली चढ़ाई जाती हो
याद रखो यादव जी सत्ता छिनने वाली होती है
जनता घट के हर पापों को गिनने वाली होती है।
सत्याग्रह के नाम पे काला धब्बा मथुरा की घटना
खलता है सर्वाधिक सत्ता का डरकर पीछे हटना
यादव जी सुनलो अब भी कर्तव्य निभाना शुरू करो
या जाने के दिन की उल्टी गिनती गिनना शुरू करो
जो भी दोषी हैं उनको पकड़ो फांसी पर लटका दो
जाते -जाते एक बार बस अपराधों को झटका दो
शाम -ए- अवध बनाओ मधुरिम इसमे नही बुराई है
जाकर गाँवों को देखो बिजली दस दिन पर आई है
रोज नए पत्थर लगवाओ राजभवन के सड़को पर
उनकी भी हालत पूछो जो भूखे बैठे सड़को पर।
कम्पेन्सेसन देने वाली नौटँकी को बन्द करो
अपराधी चोरो हत्यारो से खुलकर तुम द्वन्द करो

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"

गुरुवार, 2 जून 2016

इंजीनियरिंग पार्ट 4

दो कदम और उसके बाद कदम विराम । इंजीनियरिंग छात्र के जिंदगी में दो मौका आता है खुशियों का एक जनवरी में और दूसरा जून में । इन दो महीनो में सबसे पहले हम अपनी मोटी मोटी किताबो का विधिपूर्वक विसर्जन करते हैं और ज़िन्दगी जीते हैं । हाँ भाई बाक़ी के महीनो में तो बस ज़िन्दगी "काटते" हैं। हॉस्टल वालों को ये सुकून रहता है की  छोटी गंगा के नाम पर जो कढ़ी परोसा जाता है उससे निजात मिलेगी लेकिन जो रूम  लेके रहते हैं उन्हें सबसे महान कार्य "बर्तन माँजने" से निज़ात के बारे में सोंचते ही कुछ कुछ होने लगता है। कहा जाता है आप जैसा सोचते हैं वैसा ही बन जाते हैं अगर ऐसा ही रहा तो हम सब तो बर्तन माँजने वाला बन जाएंगे ।  यही सोंचते रहते हैं की रूम पे जा के अभी बर्तन धोना है ये करना है वो करना है आदि इत्यादि। कल मैट्रोलोजी का पेपर दे के आ रहे थे तब तक राहुल से उनके "उन्होंने" पूछा पेपर कैसा हुआ? लड़का फट पड़ा। कहा बिलकुल तुम्हारे जैसा था मतलब समझ में ही नही आया की आखिर चाहता क्या है । जैसे तुम दिमाग खाती हो वैसे  ही ....... सॉरी सॉरी ।  बस शाम को व्हाट्सऐप पर मैसेज आया हाऊ डेअर यू टॉक मी लाइक दैट इन फ्रंट ऑफ़ माय फ्रेंड्स .. ब्ला ब्ला ब्ला। बेचारा शाम से ही मेला सोना मेला बाबू कर रहा है।
इसी आशा के साथ की राहुल का बाबू मान जाए और कल का पेपर अच्छा हो कलम विराम।

~लोकेन्द्र मणि मिश्र "दीपक"